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जयपुर । राजस्थान आज तीस मार्च को अपने स्थापना का 73 वाँ राजस्थानदिवस मना रहा है । आज़ादी के बाद राजा-महाराजाओं की छोटी- बड़ी 22 रियासतों को मिला कर विभिन्न चरणों में राजस्थान का गठन हुआ था। इस मौके पर दो बड़े समारोह हुए एक में 18 अप्रेल 1948 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरु स्वयं मौजूद रहें , वहीं वृहत राजस्थान के 1949 में हुए गठन के समय तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल 30 मार्च 1949 को जयपुर आए और राजस्थान के औपचारिक गठन की रस्म पूरी की गई। तभी से तीस मार्च को राजस्थान के स्थापना दिवस ‘राजस्थान दिवस’ के रुप में मनाया जाता है।हालाँकि इसके बाद भी राजस्थान के गठन की प्रक्रिया जारी रहीं जो कि एक नवम्बर 1956 में अजमेर मेरवाड़ा के राजस्थान में विलय के साथ पूरी हुई।
आज राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है ।इससे पहलें मध्य प्रदेश क्षेत्रफल और उत्तरप्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़े प्रदेश थे।लेकिन कालान्तर में इन राज्यों को विभाजित कर छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड नए प्रदेश बनाए गए ।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। देश की शासन व्यवस्था संघीय ढाँचे पर चलती हैं।आज़ादी के बाद यह धारणा बलवती होती गई कि बड़े राज्य सर्वांगीण विकास के मार्ग में बड़ा रोड़ा है। इसलिए कालान्तर में बड़े राज्यों को विखंडित कर नए प्रदेशों का गठन किया गया और यह प्रक्रिया आज भी जारी है। जबकि पहाड़ी और सीमावर्ती प्रदेशों को विकास की मूल धारा से जोड़ने और उनकी विषम परिस्थितियों के कारण विकास के लिए शत प्रतिशत केन्द्रीय सहायता प्रदान करने के प्रावधानों के साथ विशेष राज्य का दर्जा दे दिया गया। राजस्थान आज़ादी के बाद से ही विशेष राज्य की माँग उठाता रहा है। प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों, पश्चिम राजस्थान में एशिया के सबसे बड़े मरुस्थलों में शामिल थार रेगिस्तान, पाकिस्तान से लगी देश की सबसे लम्बी सीमाओं के साथ ही हर दूसरे वर्ष सूखा और अकाल पड़ने, भूमिगत और सतहीं पानी की भारी कमी और फ्लोराइड आदि प्रदूषित पानी, गुणवत्ता पूर्ण पेयजल का भारी संकट, पहाड़ी,आदिवासी और गडरियां लुहार जैसी घुम्मकड जातियाँ, अन्य प्रदेशों की तुलना में विकास कार्यों पर आने वाली सेवाओं की अधिक लागत आदि अनेक समस्याओं के कारण राजस्थान की यह माँग वाजिब भी लगती है लेकिन आज़ादी के सात दशक गुजर जाने के बाद भी राजस्थान को यह न्यायोचित हक़ नहीं मिलने से प्रदेशवासी मानते है कि राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में राजस्थान के साथ हर बार सौतेला व्यवहार ही हुआ है।राजस्थान ने इन्दिरा गांधी नहर परियोजना (राजस्थान केनाल)को छोड़ अपने दम पर ही बीमारु राज्यों की केटेगरी से बाहर निकलने में सफलता हासिल की है और आज कृषि डेयरी उद्योग पर्यटन आदि कई अन्य क्षेत्रों में भी अभूतपूर्व प्रगति की हैं। लेकिन आज भी अपेक्षा के अनुरूप रोज़गार के अभाव में लोगों का अन्यत्र पलायन की समस्या मुँह खोलें खड़ी है।
दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाक़ों में इस कारण जो परिस्थितियाँ पैदा हों रहीं है उससे राजस्थान के अखंड अस्तित्व पर आसन्न खतरा मंडराने लगा है। पिछलें दिनों दिल्ली मुंबई वाया राजस्थान गुजरात राष्ट्रीय राजमार्ग आठ पर जो घटनायें हुई वह चिन्ता का विषय है।हाल ही राज्य विधानसभा में डूंगरपुर के विधायक गणेश घूघरा ने आदिवासियों को हिन्दू नहीं बताते हुए उनके लिए अलग आदिवासी कोड का प्रयोग करने की माँग रखी जिसका कुछ अन्य आदिवासी विधायकों और संगठनों ने समर्थन किया।बताया जाता है कि राजस्थान मध्य प्रदेश गुजरात और महाराष्ट्र के सीमावर्ती आदिवासी क्षेत्रों को मिला कर एक नया भील राज्य बनाने की कल्पना नई नहीं है । इस क्षेत्र के एक बड़े भील नेता भीखाभाई ने यह सपना बहुत पहलें देखा था। बाद में गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ अन्य बड़े आदिवासी नेताओं ने भी इस मुहिम से जुड़ इसका समर्थन किया लेकिन केन्द्र और राज्य में मज़बूत राजनैतिक नेतृत्व के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो सके परंतु पिछलें कुछ वर्षों में राजस्थान एवं गुजरात में एक नए राजनैतिक दल के अभ्युदय के साथ ही फिर से यह अंदेशा बढ़ता जा रहा है।नया भील राज्य बनाने की संभावनाओं को लेकर कुछ आदिवासी छात्रों ने भी अपने शोध पत्र और पुस्तकें प्रकाशित की हैं।
इधर कतिपय लोग राजस्थान जैसे विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले देश के सबसे बड़े भू भाग वाले प्रदेश को दो भागों में विभक्त कर छोटे प्रदेशों में विकास की अधिक सम्भावनाओं की धारणा को सहीं मानते है। बहुत वर्षों पहलें राज्य विधान सभा में तत्कालीन प्रतिपक्ष नेता डूंगरपुर के पूर्व महारावल लक्ष्मण सिंह ने भी नैसर्गिक रूप से प्रदेश को दो भागों में विभक्त करने वाली दुनिया की सबसे पुरानी अरावली पर्वत शृंखला को आधार मान राजस्थान को दो भागों पूर्वी और पश्चिम राजस्थान(मरु प्रदेश)में बांटने की माँग रखी थी। लेकिन राजाओं के नरेश मंडल के अध्यक्ष के तौर पर राज्यों के एकीकरण और राजस्थान के गठन में उनके योगदान की याद दिलवाने पर उन्होंने बाद में अपनी यह माँग वापस ले ली थी।राज्य के दोनों प्रमुख दल काँग्रेस और भाजपा भी राजस्थान को विभाजित कर दो राज्य बनाने के पक्ष में नहीं हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कई मौकों पर इसकी सम्भावनाओं को नकार चुके है वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने भी इस माँग का कभी समर्थन नहीं किया है लेकिन राजस्थान को विशेष राज्य का दर्जा देने और प्रदेश के 13 जिलों के पेयजल और सिंचाई की समस्या के स्थाई समाधान के लिए भारत सरकार से क़रीब चालीस हजार करोड़ रु लागत वाली पूर्वी राजस्थान केनाल परियोजना को स्वीकृत करने और उसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की माँग का समर्थन दोनों दल कर रहें है।
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