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स्नेहलता रेड्डी : एक अभिनेत्री जो बनी आपातकाल की शहीद

Snehalatha Reddy: An actress who became a martyr of Emergency - Jaipur News in Hindi

इंदिरा गांधी द्वारा अपने प्रधानमंत्री काल के दौरान लगाए गए आपातकाल की ज्यादती आज भी सुनने को मिलती है।, लेकिन एक अभिनेत्री को महज इसलिए आपात काल के दौरान उत्पीड़न का शिकार इस लिए होना पड़ा कि वह समाजवादी विचारक जार्ज फर्नांडीज की अभिन्न मित्र रही है। पुलिस उनसे जार्ज फर्नांडीज के बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहती थी। स्नेहलता रेड्डी का नाम भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में साहसी महिला के रूप में दर्ज है, जिन्होंने न केवल कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया, बल्कि आपातकाल के दौरान अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनकी मित्रता समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस से थी, जो उनके जीवन की दिशा को निर्णायक रूप से प्रभावित करने वाली साबित हुई। स्नेहलता के साथ जितनी ज्यादती हुई उतनी शायद अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों के साथ भी नहीं की होगी। छोटी सी काल कोठारी में रहना, पर्याप्त भोजन नहीं मिलना ओर निर्वस्त्र कर अंधेरी रात में उनको शारीरिक उत्पीड़न उनके लिए रोज का क्रम बन गया था। रात के अंधियारे में उत्पीड़न के दौरान जब एक महिला की चीख निकलती थी तो बंगलौर जेल में ही स्नेहलता की काल कोठरी के पास में ही बंद रहने वाले अटल बिहारी वाजपेई और लाल कृष्ण आडवाणी भी भय ग्रस्त हो जाते थे। स्नेहलता रेड्डी और जॉर्ज फर्नांडिस की मित्रता 1960 के दशक में शुरू हुई, जब वे समाजवादी विचारधारा और मजदूर आंदोलनों में सक्रिय थे।
जॉर्ज फर्नांडिस, जो मजदूर संघों के नेता और आपातकाल के समय प्रमुख विरोधी थे, स्नेहलता के परिवार से भी घनिष्ठ रूप से जुड़े थे। यह मित्रता बाद में एक मजबूत राजनीतिक और वैचारिक संबंध में बदल गई। 1976 में बड़ौदा डायनामाइट केस में स्नेहलता को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में उन्हें असहनीय यातनाएँ दी गईं। एक संकीर्ण और अंधेरी कोठरी में रखा गया, जहाँ शौचालय की सुविधा नहीं थी। वह अस्थमा की मरीज थीं, लेकिन उन्हें कोई चिकित्सा सहायता नहीं दी गई। जेल में लगातार दम घुटने की स्थिति, भूख, प्यास और गंदगी ने उनकी स्थिति को और बिगाड़ दिया। उनकी चीखें जेल में बंद अन्य राजनीतिक कैदियों ने भी सुनीं, जो इस अमानवीय व्यवहार के साक्षी बने।
स्नेहलता ने जेल में अपने दर्दनाक अनुभवों को एक डायरी में दर्ज किया, जो उनकी बेटी नंदना रेड्डी द्वारा बाद में सार्वजनिक की गई। यह डायरी एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन गई, जिसने आपातकाल की यातनाओं की असली तस्वीर पेश की। स्नेहलता रेड्डी (1932–1977) एक बहुआयामी व्यक्तित्व थीं—एक अभिनेत्री, रंगकर्मी, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता—जिन्होंने 1975 के आपातकाल के दौरान लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। वे आपातकाल की पहली महिला शहीद मानी जाती हैं, जिनकी कहानी आज भी साहस, प्रतिबद्धता और सृजनात्मकता की मिसाल है।
स्नेहलता रेड्डी का जन्म 1932 में आंध्र प्रदेश में हुआ था। वे एक ईसाई परिवर्तित परिवार से थीं, लेकिन उन्होंने भारतीयता को अपनाते हुए अपना ईसाई नाम बदलकर 'स्नेहलता' रखा और पारंपरिक भारतीय परिधान पहनना शुरू किया। बचपन से ही वे स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय के प्रति सजग थीं। स्नेहलता रेड्डी ने थिएटर और सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने चेन्नई में 'मद्रास प्लेयर्स' नामक अंग्रेज़ी रंगमंच समूह की सह-स्थापना की और कई नाटकों में अभिनय, निर्देशन और लेखन किया। उनके उल्लेखनीय नाटकों में ए व्यू फ्रॉम दा ब्रीड' और दा हाउस ऑफ बर्नार्ड अल्बा शामिल हैं। 1970 में उन्होंने कन्नड़ फिल्म 'संस्कार' में 'चंद्री' की भूमिका निभाई, जो जाति व्यवस्था पर तीखा प्रहार करती है। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और यह भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर बनी।
स्नेहलता और उनके पति, कवि-निर्देशक पट्टाभिरामा रेड्डी, समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित थे। 1975 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल घोषित किया, तो स्नेहलता ने इसका विरोध किया। 2 मई 1976 को उन्हें 'बरौदा डायनामाइट केस' में बिना किसी ठोस आरोप के गिरफ्तार किया गया और बेंगलुरु सेंट्रल जेल में आठ महीने तक बिना मुकदमे के रखा गया। इस दौरान उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया, जिससे उनकी स्वास्थ्य स्थिति और बिगड़ गई। जेल में रहते हुए, स्नेहलता ने अन्य महिला कैदियों के लिए आवाज उठाई।
उन्होंने जेल में सुधार के लिए भूख हड़ताल की और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने एक जेल डायरी भी लिखी, जिसमें उन्होंने जेल की कठोरता और अपने अनुभवों को दर्ज किया। स्नेहलता को बचपन से ही अस्थमा था, लेकिन जेल में उन्हें उचित चिकित्सा नहीं मिली। उनकी हालत बिगड़ती गई और 15 जनवरी 1977 को उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया। दुर्भाग्यवश, 20 जनवरी 1977 को उनकी मृत्यु हो गई। वे आपातकाल की पहली महिला शहीद बनीं।
स्नेहलता रेड्डी की बेटी, नंदना रेड्डी, एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने अपनी मां की स्मृति में कई सामाजिक कार्य किए हैं। उनके बेटे, कोणारक रेड्डी, एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। उनकी जेल डायरी को 1977 में ए परिजन डायरी नाम से प्रकाशित किया गया। 2019 में, इतिहासकार उमा चक्रवर्ती ने उनके जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री परिजन डायरीज' बनाई, जो उनके संघर्ष और योगदान को दर्शाती है। स्नेहलता रेड्डी का जीवन हमें यह सिखाता है कि कला और सामाजिक सक्रियता का समन्वय कैसे एक व्यक्ति को समाज में परिवर्तन लाने का माध्यम बना सकता है। उनका साहस, प्रतिबद्धता और मानवता के प्रति समर्पण आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

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Web Title-Snehalatha Reddy: An actress who became a martyr of Emergency
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