जयपुर। जीवन में धर्म पुरुषार्थ करना अति आवश्यक है। धर्म पुरुषार्थ धन नहीं ,मन
की आवश्यकता होती है और मन बनाने लिए समय कि आवश्यकता रहती है। गणिनी आर्यिका रत्न गौरवमति माताजी ने यह उपदेश अतिशय क्षेत्र बाड़ा पदमपुरा दिगम्बर जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पुरुषार्थ चार प्रकार के होते है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। जिसे हर
सांसारिक प्राणी को करना चाहिए और इन पुरुषार्थ के लिए ज़्यादा से ज़्यादा समय
निकालना चाहिए। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
संस्कार, सभ्यता और संस्कृति को परिभाषित करती है हिंदी- मुनि पीयूष सागर महाराज
मुनि पीयूष सागर महाराज ने गुरूवार को हिंदी दिवस पर कहा कि " देश की मातृ भाषा हिंदी है, जो देश की संस्कार, सभ्यता और संस्कृति को परिभाषित करती है जो अपने ही देश में देखने मिलती अन्य किसी देश में ऐसा नहीं है, संस्कार, सभ्यता और संस्कृति को इस देश में बनाये रखने के लिए भविष्य के गर्भ में ना जाकर इतिहास का अनुसंरण करना चाहिए जिससे हिंदी की मूल पहचान बनी रही सके।"
उपाध्यक्ष सुरेंद्र पांड्या ने बताया कि सिंह निष्क्रीडित आर्यमौन व्रत की 186 दिवसीय आराधना में कठोर साधनारत अंतर्मना मुनि प्रसन्न सागर महाराज की साधना का गुरूवार को 67वां दिन संपन्न हुआ। पूज्य मुनिश्री का अगला 14वां पारणा महोत्सव साधना के 71वें दिन सोमवार 18 सितंबर को संपन्न होगा।
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