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सरकारी दफ्तरों में अपने कार्यों को लेकर आए दिन हमने आमजन को अधिकारियों के साथ उलझते और चिल्लाते देखा है। इस पर अधिकारी द्वारा सम्बन्धित के विरुद्ध सरकारी कार्य में बाधा और मारपीट का मुक़दमा दर्ज करवाने के बारे में भी सुना है। लेकिन, काम नहीं होने पर वास्तव में अपनी नाराजगी व्यक्त करना क्या वास्तव में सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने जैसा मामला बनता है।
अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने एक इसी प्रकार के मामले की सुनवाई की। इस मामले में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के एक कर्मचारी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (हमला) के तहत एफआईआर दर्ज की गई। जुर्म यह था कि कर्मचारी सेवा से बर्खास्तगी की फाइलों का निरीक्षण करते समय कैट के कर्मचारियों पर चिल्लाया और उनको धमकाया था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
भारतीय दंड संहिता की धारा 353 के तहत हमले को इस प्रकार परिभाषित किया गया:-
जो कोई भी ऐसा इशारा या कोई तैयारी करता है, जिसका उद्देश्य यह जानना है कि ऐसा इशारा या तैयारी किसी भी उपस्थित व्यक्ति को यह आशंका दिलाएगी कि वह इशारा या तैयारी करने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति पर आपराधिक बल का प्रयोग करने वाला है तो उसे हमला करने वाला कहा जाता है।”
रिकॉर्ड पर पूरी शिकायत देखने के बाद न्यायालय ने कहाकि हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इनकार करके गलती की है, क्योंकि मामले में आईपीसी की धारा 353 के तहत मारपीट के अपराध की कोई भी सामग्री पूरी नहीं हुई थी।
अभियुक्त को दोषी ठहराने से पहले सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की आवश्यकता:
न्यायालय ने टिप्पणी की, उक्त शिकायत में अपीलकर्ता के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि वह चिल्ला रहा था और कर्मचारियों को धमका रहा था। यह अपने आप में किसी भी तरह की मारपीट नहीं मानी जाएगी। हमारे विचार से हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप न करके गलती की है।
यह ऐसा मामला है, जो कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं है। इसलिए न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए हम इस अपील को स्वीकार करते हैं। अपीलकर्ता के खिलाफ शुरू की गई पूरी कार्यवाही को रद्द करते हैं। तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।
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