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देश में जब भी आपातकाल की चर्चा होती है तब इंदिरा गांधी और संजय गांधी की चर्चा प्रमुखता से होती है इनके साथ ही कुछ कांग्रेस के नेताओं को भी आपात काल का जिम्मेदार माना गया लेकिन कुछ चेहरे ऐसे भी थे जिनका नहीं तो राजनीति से कोई लेने देना था और नहीं सत्ता की दौड़ में शामिल थे। लेकिन संजय गांधी के विश्वासपात्र होने कारण इंदिरा गांधी के द्वारा लिए जाने वाले महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदार होते थे। ऐसा ही एक नाम था रुखसाना सुल्ताना का। जिनकी चर्चा उनकी सुंदरता की तो चर्चा होती ही थी साथ ही दिल्ली के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में परिवार नियोजन का अभियान चलवाने के लिए उन्हें चर्चा के साथ ही विवादस्वरूप देखा गया।
भारतीय राजनीतिक इतिहास में जब भी आपातकाल (1975-77) का जिक्र हुआ तब, तब संजय गांधी के साथ जिस एक महिला का नाम बड़े ज़ोर से लिया गया उसमें रुखसाना सुल्तानाकी चर्चा सबसे ज़्यादा रही। बॉलीवुड अभिनेत्री अमृता सिंह की मां और अभिनेता सैफ अली खान की पूर्व सास रुखसाना सुल्ताना का जीवन ग्लैमर, राजनीति और विवादों का अनूठा मिश्रण रहा है। एक सामाजिक जीवन से राजनीति के तूफानी दौर तक उनकी कहानी भारतीय इतिहास में एक अनछुआ अध्याय रही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
रुखसाना सुल्ताना का जन्म वर्ष 1930 में जालंधर (पंजाब )में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम मीनू बिंबेट था। उनके पिता मदन मोहन बिंबेट भारतीय वायुसेना में अधिकारी थे जबकि मां ज़रीना हक़ मुस्लिम परिवार से थीं और बीकानेर रियासत के एक प्रमुख न्यायिक अधिकारी की बेटी थीं। इस तरह रुखसाना एक ऐसे परिवेश में पली-बढ़ी जहाँ परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम था। उनकी मां की बहन, यानी उनकी मौसी, जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री बेगम पारा थीं, जो अपने जमाने की खूबसूरत और फैशनेबल अदाकारा मानी जाती थीं। फिल्मी दुनिया और सामाजिक उच्च वर्ग से जुड़े होने के चलते रुखसाना का रुझान भी ग्लैमर और समाजिक जीवन की ओर स्वाभाविक था।
उन्होंने भारतीय सेना के एक अधिकारी शिविंदर सिंह वीरक से शादी की थी।
इस शादी से उनकी एक बेटी अमृता सिंह हुईं, जो बाद में बॉलीवुड की एक बड़ी स्टार बनकर उभरीं। 1970 के दशक में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया, तब उनके छोटे बेटे संजय गांधी को सत्ता के पीछे असली ताकत माना जाने लगा। उस समय केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री हाउस की अप्रत्यक्ष रूप से कमान संजय गांधी के हाथों में थी। उन्होंने आपाकाल के दौरान सबसे ज़्यादा जोर जनसंख्या नियंत्रण (फैमिली प्लानिंग) और शहरी सुधार (अर्बन सेनिटेशन)। इन्हीं योजनाओं के तहत मजबूर नसबंदी कार्यक्रम (फोर्सड स्टेरलाइजेशन ड्राइव) शुरू किया गया।
रुखसाना सुल्ताना ने इस अभियान में एक महत्वपूर्ण और अत्यंत विवादास्पद भूमिका निभाई। उनकी जिम्मेदारी थी दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों खासकर ओखला, जमिया नगर, और चांदनी चौक जैसे क्षेत्रों में परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू कराना। उन्होंने बड़े पैमाने पर मुस्लिम समुदाय के बीच प्रचार अभियान चलाया और कई जगहों पर जबरन नसबंदी कराई गई, जिससे वे भारी विवादों में आ गईं।रुखसाना की खूबसूरती, तेज़तर्रार व्यक्तित्व और संजय गांधी के साथ उनकी करीबी ने उन्हें 'ग्लैमर गर्ल ऑफ इमरजेंसी' की उपाधि दिला दी। उनकी इस भूमिका की वजह से उन्हें कई बार आलोचना का सामना करना पड़ा और आज भी उनके योगदान को 'अलोकतांत्रिक' और 'अन्यायपूर्ण' माना जाता है।
रुखसाना और संजय गांधी के रिश्ते को लेकर उस दौर में कई तरह की अफवाहें भी उड़ती रहीं। राजनीतिक गलियारों से लेकर पत्रकारों तक में यह चर्चा थी कि रुखसाना को संजय गांधी का अनौपचारिक सेनापति माना जाता था, खासकर मुस्लिम इलाकों में। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, रुखसाना की संजय गांधी से नजदीकियों ने ही उन्हें राजनीतिक ताकत दिलाई थी, जबकि कुछ अन्य स्रोतों का कहना है कि रुखसाना खुद अत्यंत महत्वाकांक्षी थीं और आपातकाल के दौर को उन्होंने अपना प्रभाव बढ़ाने के अवसर की तरह इस्तेमाल किया।
1977 में जब इंदिरा गांधी की सरकार चुनावों में हार गई और आपातकाल समाप्त हो गया, तब रुखसाना सुल्ताना अचानक सार्वजनिक जीवन से गायब हो गईं।
उन पर गंभीर आरोप लगे खासकर जबरन नसबंदी को लेकर। हालांकि उन पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई, लेकिन उनका सामाजिक दायरा काफी सीमित हो गया। इसके बाद रुखसाना ने अपना ध्यान अपने परिवार और सामाजिक जीवन पर केंद्रित कर लिया। बेटी अमृता सिंह ने 1983 में फिल्म "बेताब" से बॉलीवुड में डेब्यू किया और तेजी से सुपरस्टार बन गईं। 1980 और 90 के दशक में अमृता सिंह के करियर के दौरान भी रुखसाना हमेशा उनके साथ एक मजबूत समर्थन के रूप में मौजूद रहीं।
वर्ष 1991 में जब अमृता सिंह ने बॉलीवुड के नवोदित अभिनेता और पटौदी खानदान के नवाब सैफ अली खान से शादी की, तो रुखसाना सुल्ताना इस शादी की सबसे बड़ी समर्थक थीं। हालाँकि सैफ और अमृता की उम्र में काफी अंतर था और यह शादी समाज के कई वर्गों को चौंकाने वाली लगी थी, लेकिन रुखसाना ने हमेशा अपनी बेटी के फैसले का समर्थन किया। अमृता और सैफ के दो बच्चे हुए सारा अली खान और इब्राहिम अली खान।
हालांकि 2004 में सैफ और अमृता का तलाक हो गया, लेकिन रुखसाना अपने नाती-पोतों के साथ मजबूत रिश्ता बनाए रखी।
रुखसाना सुल्ताना को उनके बेहतरीन फैशन सेंस, तेज दिमाग और सामाजिक तौर पर प्रभावी व्यक्तित्व के लिए याद किया जाता है। वह उन गिनी-चुनी महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने भारतीय राजनीति में, भले ही संक्षिप्त समय के लिए, अपनी स्पष्ट और विवादास्पद छवि स्थापित की।रुखसाना सुल्ताना का जीवन इस बात का उदाहरण है कि किस तरह एक महिला समाज के उच्च वर्ग से उठकर राष्ट्रीय राजनीति में हस्तक्षेप कर सकती है, चाहे उसकी विरासत कितनी ही विवादित क्यों न रही हो।
आज भले ही राजनीति की समझ रखने वाले लोग रुखसाना सुल्ताना का नाम मुख्यधारा की चर्चा में भूल गए और उनका नाम भी बहुत कम चर्चा में कम आता है, लेकिन 1970 के दशक की भारतीय राजनीति को समझने के लिए रुखसाना सुल्ताना का जिक्र करना आवश्यक है। वे न सिर्फ संजय गांधी की राजनीतिक रणनीति का एक अहम हिस्सा थीं, बल्कि आपातकाल के काले अध्याय की भी एक प्रत्यक्ष गवाह रहीं।
रुखसाना सुल्ताना का जीवन भारतीय राजनीति और समाज के उस दौर का प्रतिबिंब है जब सत्ता, सामाजिकता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का मेल एक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न कर सकता था। रुखसाना सुल्ताना की कहानी यह भी दिखाती है कि इतिहास में हर चमकती हुई शख्सियत के पीछे कुछ अनकहे विवाद और दर्द भी छुपे होते हैं।
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