जयपुर । कथक की ता-थई-थई और मांगणियार लोक कलाकारों का आलाप। घुंघरू की खनक और खड़ताल की ताल। मोमासर ताल के खुले वातावरण और हल्की सुहानी सर्द रात में मानो मोमासर ताल से ताल मिला रहा हो। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उत्सव के आखिरी दिन मोमासर उत्सव ने विभिन्न गांवों-शहरों के हज़ारों दर्शकों को न केवल राजस्थान बल्कि हंगरी के लोक संगीत से भी रूबरू करवाया। हंगरी के लोक कलाकारों ने राजस्थान की धरा पर हंगरी की संस्कृति को साकार कर दिया। ये सब ऐसा था जैसे राजस्थान और हंगरी का लोक संगीत एक साथ, एक मंच पर जींवत हो गया हो।
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