जयपुर । वनक्षेत्र की संख्या में कमी होने तथा अनुकूल वातावरण उपलब्ध नहीं होने के कारण वन्यजीवों के क्षेत्र-विशेष से विलुप्त होना कोई नई बात नहीं है परंतु ऐसे ही वन्यजीवों के वनक्षेत्र से विलुप्त हो जाने के बाद सफल पुनर्वास किया जाना वास्तव में अनूठा प्रयास है। ऐसा ही तीन सफल प्रयास उदयपुर के वन विभागीय अधिकारियों द्वारा किए जा चुके हैं, जिनमें से एक प्रयास का एक वर्ष मई माह में ही पूर्ण हो रहा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
जयसमंद अभयारण्य में हुई थी पुनर्वास की कवायद
उदयपुर शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर 50 वर्ग किलोमीटर में पसरे जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य कभी 1950 में अधिसूचित किया गया था। यह क्षेत्र कभी मेवाड़ राज्य के तत्कालीन शासकों के लिए खेल रिजर्व था और मेवाड़ के महाराणा द्वारा की जाने वाली वार्षिक बाघ शूटिंग इस रिजर्व से शुरू होती थी। गेम रिजर्व होने वाला क्षेत्र वन्यजीवों से समृद्ध था, जिसमें टाईगर, पैंथर, हाइना, भेडि़या, सियार, जंगल बिल्ली, जंगली सूअर, चिंकारा, सांभर, चित्तीदार हिरण और अन्य जानवर शामिल थे। आजादी के बाद, कई कारणों से, इस रिजर्व में टाइगर के साथ अन्य वन्यजीवों में एक खतरनाक गिरावट देखी। हालात तो यह हो गए कि इस अभयारण्य में सांभर और चीतल पूरी तरह से समाप्त हो गए और केवल कुछ चिंकारा और नील गाय ही बचे थे। इन स्थितियों में चीतल और सांभर के पुनर्वास के लिए पहल की भारतीय वन सेवा के अधिकारी और तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) राहुल भटनागर ने और यहां पर लुप्तप्राय हो चुके चीतल और सांभर का पुनर्वास किया गया।
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