जयपुर। सुरक्षा अधिकारियों के लिए आवश्यक है कि वे रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों, सड़कों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी बच्चों पहचानकर हैल्पलाइन, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) एवं ऐसे अन्य संगठनों की मदद से उनका बचाव करें। यह ना सिर्फ बच्चों के बचाव में मददगार होगा, बल्कि ऐसे बच्चों को जीवन का दूसरा अवसर भी देगा। प्रत्येक बच्चा प्यार एवं सम्मानजनक व्यवहार के साथ-साथ बेहतर भविष्य के लिए शिक्षित होने का हकदार भी होता है। यह कहना था राजस्थान के बाल अधिकारिता विभाग के निदेशक, निष्काम दिवाकर का। वे आज जयपुर के होटल विस्टा मौर्या पैलेस में ‘चाइल्ड राइट्स एंड चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफ गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी) एंड जूवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन)‘ विषय पर आयोजित वर्कशॉप में सम्बोधित कर रहे थे। प्रयास जेएसी सोसायटी एवं वर्ल्ड विज़न इंडिया द्वारा आयोजित इस वर्कशॉप में अनेक रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (आरपीएफ) एवं गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी) अधिकारी शामिल हुए। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इसके अतिरिक्त, दिवाकर ने बताया कि बाल संरक्षण पर एक ‘कनवर्जेंट प्लान‘ प्रक्रिया में है। इस योजना में कानून, शिक्षा, श्रम विभाग और अन्य हितधारकों के विभिन्न सुझावों को शामिल किया जायेगा। स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ), इंस्पेक्टर आरपीएफ, जीआरपी की जिम्मेदारियों की जानकारी देतेे हुए प्रयास जेएसी के शशांक शेखर ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम के तहत सभी जीआरपी एवं आरपीएफ कर्मचारियों को जानकारी देने, हितधारकों में जागरूकता उत्पन्न करने, रेलवे प्लेटफॉर्म्स के बाल सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने, एनजीओ को बच्चों का हस्तांतरण सुनिश्चित करने, विशेष किशोर पुलिस इकाई की कार्य भूमिका के बारे में जागरूक किए जाने की आवश्यकता है तथा सीसीटीवी सर्विलेंस फुटेज की समीक्षा करने के लिए नामित एनजीओ को अनुमति दिए जाने की भी जरूरत है।
उच्च न्यायालय के अधिवक्ता, महेश ने कहा कि बाल संरक्षण के मामलों में महिला अधिकारियों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। महिला अधिकारियों के साथ बातचीत करने में बच्चे अधिक सहज महसूस करते हैं। खोए हुए, छोड़ दिए गए तथा दुर्व्ययवहार के शिकार बच्चों के लिए महिला अधिकारी बहिन अथवा मां की तरह हो सकती हैं। अक्सर विशेष बच्चों को भी बचाया जाता है। इन बच्चों को ऐसे विशेष स्कूलों में ले जाने की जरूरत होती है, जहां प्रशिक्षित कर्मचारी बच्चे के साथ संवाद करने में मदद कर सकें और साक्ष्य एकत्रित करने में प्रभारी अधिकारी की मदद कर सकें।
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