जयपुर । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा है कि जनप्रतिनिधियों को मैं, मेरा के स्थान पर मेरा देश, मेरी जनता, मेरा समाज की सोच रखते हुए कार्य करना चाहिए। उन्होंने विधायकों से समावेशी विकास और जनहित की परम्परा को मजबूत बनाते हुए विधानसभा के जरिए संसदीय गरिमा को बढ़ाने और राजस्थान के समग्र विकास के लिए कार्य करने का आह्वान किया।
माण, सम्माण और
बलिदान सू रंगी राजस्थान की धोरा री धरती रा निवासियां न घणी शुभकामनाएं। सन 1952 में राजस्थान
विधान-सभा का गठन हुआ। तब से लेकर आज तक इस विधान-सभा द्वारा 71 वर्षों का गौरवशाली
इतिहास रचा गया है। इसके लिए मैं राज्य की प्रबुद्ध जनता को,
राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री महोदय,
तथा आप सभी विधायकों को हार्दिक बधाई देती हूं। इस अवसर पर मैं समस्त देशवासियों
की ओर से, राजस्थान के सभी पूर्व राज्यपालों,
मुख्यमंत्रियों, विधान-सभा अध्यक्षों और विधायकों
के योगदान को स्मरण करती हूं। राजस्थान के लिए यह विशेष
गौरव की बात है कि वर्तमान संसद के दोनों सदनों की अध्यक्षता राजस्थान विधान-सभा
के पूर्व विधायकों द्वारा की जा रही है। उप-राष्ट्रपति के रूप में राज्य-सभा के
अध्यक्ष श्री जगदीप धनखड़ जी तथा लोक-सभा के अध्यक्ष श्री ओम बिरला जी राजस्थान में
विधान-सभा सदस्य रह चुके हैं। संविधान सभा द्वारा प्रत्येक
राज्य में विधायिका की स्थापना सुनिश्चित की गयी। इस प्रकार संविधान की धारा 168
द्वारा विधान सभाओं का गठन करने का प्रावधान लागू हुआ। जैसा कि इस सदन के सभी
सदस्य जानते हैं, स्वाधीनता के बाद वर्ष 1948 में
मत्स्य यूनियन की स्थापना के साथ इस राज्य के स्वरूप का निर्माण कार्य शुरू हुआ,
जो विभिन्न चरणों से होता हुआ 1956 में States Re-organisation Act के
अनुसार राजस्थान के पुनर्गठन तथा अंत में अजमेर के राजस्थान में विलय के साथ
सम्पन्न हुआ। राज्य के इस एकीकृत तथा व्यापक स्वरूप के आधार पर विधान-सभा का
स्वरूप भी निर्धारित हुआ, यद्यपि
पहली विधान-सभा वर्ष 1952 से अस्तित्व में थी। सभी सामाजिक वर्गों तथा भौगोलिक
क्षेत्रों के विधायकों की उपस्थिति के कारण यह विधान-सभा राजस्थान की विविधता का
सुंदर प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है। क्षेत्रफल की दृष्टि से
राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान में जैसलमर के मरुस्थल से लेकर
सिरोही के माउंट आबू, उदयपुर की झीलों तथा रण-थम्बोर के
वनांचल में प्रकृति की इंद्रधनुषी छटा दिखाई देती है। यह विधान सभा भवन राजस्थान
की पारंपरिक स्थापत्य कला का सुंदर आधुनिक उदाहरण है। जयपुर को UNESCO
द्वारा World Heritage City का दर्जा
दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जयपुर नगर की निर्माण योजना वैदिक स्थापत्य
कला पर आधारित है जिसमें अन्य शैलियों का भी सुंदर समावेश किया गया है। राजस्थान
के शिल्पकार और कारीगर बेजोड़ निर्माण कार्य और handicrafts
के
लिए जाने जाते हैं। राष्ट्रपति भवन की गणना
विश्व के सबसे प्रभावशाली भवनों में की जाती हैं। मैं आपके साथ यह साझा करना
चाहूंगी कि राष्ट्रपति भवन के निर्माण में लगे अधिकांश पत्थर राजस्थान से ही गए
थे। राष्ट्रपति भवन के सुंदर निर्माण में
राजस्थान के अनेक कारीगरों का परिश्रम और कौशल शामिल है। 'जयपुर
कॉलम' राष्ट्रपति भवन के प्रांगण की शोभा
बढ़ाता है। इस तरह 'जयपुर कॉलम' के
माध्यम से राजस्थान की छवि राष्ट्रपति भवन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति तथा वहाँ
रहने और कार्य करने वाले सभी लोगों के मनो-मस्तिष्क में बनी रहती है। अतिथि को देवता समझने की
भारतीय भावना का बहुत अच्छा उदाहरण राजस्थान के स्नेही लोग प्रस्तुत करते हैं।
राजस्थान में लोकप्रिय गीत 'पधारो म्हारे
देस' में अभिव्यक्त अतिथि सत्कार की भावना को यहां के
लोगों ने अपने व्यवहार में ढाला है। राजस्थान के लोगों के मधुर व्यवहार और प्रकृति
तथा कलाकृतियों के मनमोहक आकर्षण के कारण देश विदेश के लोग यहां बार-बार आना चाहते
हैं। देवियो और सज्जनो, राजस्थान के उद्यमी लोगों ने
राज्य से और देश से बाहर जाकर वाणिज्य और व्यापार के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी
प्रभावशाली पहचान बनाई है। इस प्रकार आप सभी विधायक-गण एक समृद्ध परंपरा वाले
राज्य में अत्यंत प्रतिभाशाली और परिश्रमी लोगों के जनप्रतिनिधि हैं। सभ्यता और संस्कृति के हर
आयाम में राजस्थान की परंपरा बहुत मजबूत रही है। आज से लगभग 1500 वर्ष पहले
राजस्थान के क्षेत्र में ही संस्कृत के महाकवि माघ ने 'शिशुपाल
वध' नामक श्रेष्ठ महाकाव्य की रचना की थी। उनके काव्य की
तुलना महाकवि कालिदास के काव्य से की जाती है। हिन्दी का प्रथम कवि होने का गौरव
राजस्थान के चंद बरदाई को जाता है। उनके द्वारा लिखित 'पृथ्वी
राज रासो' को हिन्दी भाषा का पहला काव्य माना
जाता है। राजस्थान की मीराबाई ने भक्ति साहित्य को अमूल्य योगदान दिया है। समानता तथा लोकतान्त्रिक
भावनाओं पर आधारित राज्य-व्यवस्था राजस्थान की भाव-भूमि में प्राचीन काल से ही
विद्यमान रही है। महाभारत में आदिवासी समुदायों के ऐसे गणतंत्रों का उल्लेख मिलता
है जो पाँचवीं शताब्दी तक अस्तित्व में रहे थे। ऐसे गणतंत्रों में राजस्थान के
उत्तरी क्षेत्र में स्थापित यौधेय जनजाति का गणतन्त्र सर्वाधिक प्रसिद्ध था। स्वाभिमान
के लिए संग्राम करने की भावना राजस्थान की धरती के लोगों में कूट-कूट कर भरी हुई
है। यही भावना राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का आधार रही है। यहां के वीर योद्धाओं
ने जिन राजाओं के नेतृत्व में धरती को अपने रक्त से लाल कर दिया वे राजा भी अपने
लोगों से अथाह प्रेम करते थे। पृथ्वी राज चौहान, राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे वीरों और उनके सेनानियों का शौर्य भारत
की वीर गाथाओं के स्वर्णिम अध्याय हैं। चित्तौड़ का विजय स्तम्भ राष्ट्रीय गौरव का
एक जीवंत प्रतीक है। महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करने वाले वनवासी
वीर योद्धा राणा पूंजा भील के अमर बलिदान की कहानी मेवाड़ का बच्चा-बच्चा जानता है।
वीर बालक दूधा भील ने भी महाराणा प्रताप के आदर्शों का अनुसरण करते हुए अपने प्राण
समर्पित कर दिए। जनजातीय समुदाय के लोगों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए
मोतीलाल तेजावत ने 'एकी आंदोलन' चलाया
था जिसका उद्देश्य एकजुट होकर शोषण के खिलाफ संघर्ष करना था। शिक्षित
समाज को समावेशी शिक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने के संघर्ष में अपने प्राणों की
आहुति देने वाली डूंगरपुर की वीरबाला कालीबाई के विषय में सभी देशवासियों को
जानकारी होनी चाहिए। समाज सुधारक और महान स्वाधीनता सेनानी गोविंद गुरु जी के
असंख्य देशप्रेमी अनुयायी मानगढ़ नरसंहार में वीरगति को प्राप्त हुए। राजस्थान सहित
देश के अनेक क्षेत्रों में गोविंद गुरु जी का प्रभाव था। मुझे प्रसन्नता है कि 'आजादी
का अमृत महोत्सव' के उपलक्ष में हो रहे कार्यक्रमों
के माध्यम से देशवासियों को मानगढ़ धाम की गौरव गाथा के बारे में अवगत कराया जा रहा
है। जनजातियों सहित राजस्थान के सभी समुदायों के लोगों ने देशप्रेम के अनुपम
उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। मैंने विधान सभा में इस विषय
पर थोड़े विस्तार में जाकर इसलिए बात की है कि हमारे स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों
पर ही हमारे संविधान के आदर्श निर्धारित किए गए हैं। न्याय,
स्वतन्त्रता, समता और बंधुता के ये संवैधानिक
आदर्श सभी विधायकों के लिए मार्गदर्शक सिद्धान्त होने चाहिए। स्वाधीनता के बहुत पहले
सन 1929 में बाल विवाह को समाप्त करने के महान उद्देश्य के साथ एक कानून Central
Legislative Assembly द्वारा पारित किया गया था। महिला सशक्तीकरण तथा
सामाजिक समावेश का वह महत्वपूर्ण अधिनियम बोल चाल में 'शारदा
ऐक्ट' के नाम से जाना जाता है क्योंकि
उसके प्रणेता श्री हरबिलास शारदा थे। श्री हरबिलास शारदा राजस्थान के निवासी थे। स्वाधीनता के बाद श्री
मोहनलाल सुखाड़िया से लेकर श्री भैरों सिंह शेखावत जैसे जन-सेवकों ने संवैधानिक
आदर्शों के अनुरूप राज्य स्तर के कानून बनाने में तथा समावेशी और कल्याणकारी
योजनाओं को लागू करने में प्रभावी नेतृत्व दिया। समावेशी विकास और जन-हित में
कार्य करने की इस परंपरा को मजबूत बनाना सभी विधायकों का कर्तव्य है। मैं राजस्थान के समग्र विकास
तथा राज्य के सभी निवासियों के स्वर्णिम भविष्य की मंगलकामना करती हूं। राजस्थान
की विधान सभा के सभी सदस्य जन-कल्याण और
राज्य के विकास के लिए निरंतर कार्यरत रहेंगे तथा संसदीय प्रणाली की गरिमा को
बढ़ाते रहेंगे, इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी
को विराम देती हूं। धन्यवाद! जय हिन्द! ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
राष्ट्रपति मुर्मु 15वीं राजस्थान विधान सभा के आठवें सत्र के पुन: आरम्भ होने पर शुक्रवार को यहां आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत विशेष रूप से सम्बोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को जनता बहुत प्यार से चुनकर भेजती है, ऐसे में उनका चाल-चलन, व्यवहार, आचार-विचार सब जनता के हित को ध्यान में रखते हुए ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि कानून बनाते समय जनता की वर्तमान जरूरतों और व्यापक जनहित का ध्यान रखें। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों को अपनाते हुए सामाजिक न्याय और बंधुत्व की भावना के लिए कार्य किए जाने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि वर्तमान संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष राजस्थान से आते हैं, यह प्रदेश के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 168 के अंतर्गत प्रदेश में विधानसभाओं के गठन का प्रावधान लागू हुआ। उन्होंने कहा कि राजस्थान में पहली विधानसभा 1952 में अस्तित्व में आई, लेकिन 1956 में प्रदेश के एकीकरण के साथ विधानसभा का वर्तमान स्वरूप निर्धारित होने लगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान में गणतंत्र की परम्परा प्राचीन काल से ही देखने को मिलती हैं, यहां उत्तरी राजस्थान के भूभाग में पांचवीं शताब्दी तक यौधेय जनजाति का गणराज्य था।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राजस्थानी भाषा में सभी के अभिनंदन से अपने उद्बोधन की शुरुआत की। उन्होंने राजस्थान विधानसभा के निर्माण और उसकी एतिहासिक यात्रा को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि राजस्थान अपनी गौरवमय परम्पराओं, स्थापत्य और शिल्प धरोहर में अनूठा है। उन्होंने जयपुर को यूनेस्को द्वारा एतिहासिक नगरी का दर्जा दिए जाने के लिए बधाई भी दी। उन्होंने अपने सम्बोधन में राजस्थान के गौरवशाली इतिहास, शूर-वीरता, सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और पधारो म्हारे देस के आतिथ्य सत्कार सहित सभी आयामों की चर्चा की।
राष्ट्रपति मुर्मु ने महाकवि माघ, चन्दवरदाई, मीरांबाई के साहित्यिक अवदान को स्मरण किया, तो उन्होंने पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा और महाराणा प्रताप के साथ-साथ उनके सहयोगी रहे राणा पूंजा को भी याद किया। उन्होंने डूंगरपुर की आदिवासी बालिका कालीबाई के आजादी में रहे योगदान को याद करते हुए गोविंद गुरु को महान स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए कहा कि स्वाभिमान की भावना राजस्थान के लोगों में कूट-कूट कर भरी है।
राष्ट्रपति ने पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मोहनलाल सुखाडिया से लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोंसिंह शेखावत द्वारा राजस्थान के विकास के लिए किए गए कार्यों को याद किया। उन्होंने बाल विवाह निरोधक कानून (शारदा एक्ट) को महत्वपूर्ण बताते हुए सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रदेश में किए गए कार्यों की भी चर्चा की।
यहां पढ़ें राष्ट्रपति का पूरा संबोधन
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