जयपुर। कविता बुरे दिनों में नहीं है। इसके चाहने वाले आज भी हैं। लेखक कोई
भी हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके चाहने वाले आज भी हैं। मेरी एक
कविता श्मशान में लिखी गई और पढ़ी जा रही है। यह कहना है नरेश सक्सेना का। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सक्सेना ने यह बात प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से राजधानी जयपुर
में जनपथ, अंबेडकर सर्किल, एसएमएस स्टेडियम के पास स्थित यूथ हॉस्टल में
आयोजित PLF 2018 में कही।
भारतीय साहित्यकारों के इस महाकुंभ में मीडिया पार्टनर www.khaskhabar.com है।
सक्सेना ने कहा कि कविता पढ़ने वालों से लोकप्रिय होती है। बिज्जी की बैठक में
आयोजित रचना पा: कविता बुरे दिनों में, सत्र में मंगलेश डबराल, लीलाधर
मंडलोई, असद जैदी और देवीप्रसाद मिश्र ने संबोधित किया। इस सत्र का संचालन
करते हुए लीलाधर मंडलोई का कहना था कि कविता के बुरे दिन कभी नहीं आएगे जब
तक पढ़ने वाले लोग रहेंगे कविता जिंदा रहेगी। किसी भी भाषा में लिखी कविता
लोगों को प्रेरित करती है।
बाजार के शोर में साहित्य दूर हुआ
ख्यातनाम
लेखक विष्णु खरे, विभूति नारायण का कहना था कि बाजारवाद के दौर में
साहित्य दूर हो चुका है। लेखक ही इसे बचा सकते हैं। पीएलएफ जैसी गतिविधयां,
विचार गोष्ठियां और काव्य गोष्ठियां बाजारवाद से दूर रख सकती है। बाजारवाद
का प्रभाव सभी पर है। लेखक भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं। इस सत्र में
जितेन्द्र भाटिया और वीरेन्द्र यादव ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन प्रेम
भारद्वाज ने किया।
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