जयपुर। भारतीय साहित्य के कलमकारों के महाकुंभ PLF-2018 ( समानांतर साहित्य उत्सव )में शनिवार को बिज्जी की बैठक के सत्र में आदिवासियों का दर्द झलक उठा। साहित्यकारों ने आदिवासियों की समस्याओं पर खुलकर अपने विचार रखे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से राजधानी जयपुर में जनपथ, अंबेडकर सर्किल, एसएमएस स्टेडियम के पास स्थित यूथ हॉस्टल में आयोजित तीन दिवसीय PLF 2018 में साहित्यकारों
ने बिज्जी की बैठक के सत्र में आदिवासी और आदिवासी विषय पर अपने विचार रखे। भारतीय साहित्यकारों के इस महाकुंभ में मीडिया पार्टनर www.khaskhabar.com है।
रिटायर्ड आईजी हरिराम मीना का कहना था कि आदिवासियों की प्राकृतिक संपदा पर देसी विदेशी कंपनियां अपना अधिकार बना रही हैं। खनन करके संसाधनों का दोहन कर रही हैं। आदिवासियों को उनकी जमीनों से खदेड़ जा रहा है जिसका वे विरोध कर रहे है।
लेखक बेलाराम घोघरा का कहना था कि आदिवासियों के आंदोलन की शुरुआत अंग्रजों के समय से ही हो गई थी। तब से लेकर आजतक उनका संघर्ष जारी है। इनकी जमीनों का प्राकृतिक संसाधनों का अब सरकार इसका दोहन कर रही है। आदिवासियों की जमीनें लेकर उनका विस्थापन हो रहा है। बांसवाडा और डूंगरपुर के आदिवासियों का यही दर्द है।
डॉ. जीएस सोमवत का कहना था कि सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कानून तो बना दिये, लेकिन उसको उपयोग में नहीं लाया जाता। कहने को तो ग्राम सभा की अनुमति के बिना जमीनों का उपयोग नहीं किया जा सकता। सरकार खुद इन कानूनों का उल्लघंन कर रही है। आदिवासियों की जमीनों पर खनन किया जा रहा है। सरकार जमीन अवाप्त कर रही है और कौड़ियों में मुआवजा दिया जा रहा है। इससे असंतोष बढ़ रहा है।
सीएल मीना का कहना था कि आदिवासियों की समस्या उनकी जमीनों का अधिग्रहण और विस्थापन है। उनके लिए कानून तो बहुत सारे हैं लेकिन उनका उपयोग नहीं हो रहा है। सारे कानून निष्प्रभावी हो गए हैं।
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