जयपुर । राजधानी के यूथ हॉस्टल में तीन दिवसीय समानांतर साहित्य उत्सव के उदघाटन सत्र में देश के ख्यातनाम साहित्यकारों ने 'हमारा समय' विषय पर बोलते हुए देश की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई है। उदघाटन सत्र में साहित्यकार विभूतिनारायण ने कहा कि 21वीं सदी का यह समय तरह-तरह के अंर्तविरोधों से बना हुआ है। भारतीय साहित्यकारों के इस महाकुंभ में मीडिया पार्टनर www.khaskhabar.com है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
साहित्यकार विभूतिनारायण ने कहा कि धर्म, ईश्वर और विवाह नष्ट हो रहे है और ईश्वर भी आखिरी लड़ाई लड़ रहा है। देश धर्म के नाम पर टूट रहा है विवाह जैसे संस्कार यथास्थिति जैसे हो गए है और विवाहेत्तर संबंधों को मान्य माने जाने लगा है। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि धर्म, ईश्वर और विवाह को बचाने के लिए मजबूती से मुकाबला करना होगा। नहीं तो सिर्फ सौ सालों में हिंसा के लिए जबरदस्त उपकरण बनाए गए है।
लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि हमारा समय यह तब से जानती थी कि जब उन्होंने लोकगीत सुने, प्रतिरोध के स्वर लिखे, लेकिन उन स्त्रियों ने भी प्रतिरोध के स्वर लिखे है, जो पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन उनके स्वर दर्ज नहीं हो सके, सिर्फ खाली जबानी रहे। उन्होंने कहा कि सत्ता से हमेशा से वह लोग लड़ते रहे है, जो कमजोर रहे है, जिन्हे हराने की कोशिश हो रही है। पीएलएफ का आयोजन भी इस तरह का आयोजन है, जिनसे जुड़े लोगों को हराने की कोशिश हो रही है।
यहां एक आम आदमी की बात होगी, ना की अन्य लिट् फेस्ट की तरह कारोबार की बात। उन्होंने चिंता जताई कि आजकल लेखकों की श्रेणियां भी बांट दी गई है। बेस्ट सेलर वाला लेखक कौन-कौन है, जबकि लेखक की किताब बेस्ट टेलर होनी चाहिये। फेसबुक पर यह लिखना कि मेरी किताब पढ़ों, इस तरह का प्रचार करना गलत है। लेखक की किताब का प्रचार पाठकों से होता है। पाठकों के विश्वास पर ही लेखकों की किताब आगे चलती है। उन्होंने जेएलएफ जैसे आयोजन पर बोला कि हम जैसे लेखकों को जादूगरी नहीं आती है, जिन्हें जादूगरी आती है उन्हे लिट् फेस्ट जैसे आयोजनों में बुलाया जाता है। उन्होंने कहा कि पीएलएफ जैसा आयोजन दिल्ली में भी आयोजित कराने की प्रयास करेगी।
उदघाटन सत्र में राजस्थानी साहित्यकार अर्जुन देव चारण ने कहा कि यह वक्त बाजार का वक्त है। पाठक अपने आपको उपभोक्ता मान बैठा है। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आजादी के 70 साल बाद में कोई सी भी सरकार राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं दिला सकी है।
साहित्यकार लीधाधर मंडलोई ने कहा कि पीएलएफ जैसा आयोजन इस बात का सबूत है कि अभी हम जिंदा है और सिर्फ लेखकों को नहीं आप सभी को अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे।
कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि पीएलएफ एक बहुत बड़ा हस्तक्षेप है, और यह एक चिंगारी की तरह है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई की आजकल हर कोई अंग्रेजी भाषा को बड़ी भाषा मान बैठा है, जबकि अंग्रेजी कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर की भाषा नहीं है, यह एक भ्रम फैलाया हुआ है। हमारी मातृभाषा सिर्फ हिन्दी ही होनी चाहिये।
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