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जयपुर। राजस्थान में बीते कुछ समय से अंग प्रत्यारोपण मामला लगातार चर्चा में है। अब इस मामले में राजस्थान सरकार के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने सरकार की ओर उठाए गए कदमों की जानकारी दी। उन्होंने प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि अंग प्रत्यारोपण के लिए फर्जी एनओसी जारी होने के मामले में राज्य सरकार पूरी गंभीरता और तत्परता से सख्त एक्शन ले रही है। यह मानव जीवन से जुड़ा बेहद संवेदनशील मामला है। किसी भी व्यक्ति के जीवन से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। मामले में राज्य सरकार गहन जांच-पड़ताल करवा रही है। हम तह तक जाएंगे और दोषी किसी भी स्तर का व्यक्ति हो। सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
यह प्रकरण वर्ष 2020 से चला आ रहा था, जिसका भण्डाफोड़ चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने आगे आकर किया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि मानव अंग प्रत्यारोपण से जु़ड़ी प्रक्रिया में वर्ष 2020 से लेकर वर्ष 2023 तक विभिन्न स्तरों पर घोर लापरवाही एवं अनियमितताएं हुईं। यह साहस की बात है कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों ने आगे आकर इस सारे मामले को उजागर किया। उजागर करने के साथ-साथ मामले में एक्शन भी लिया। एनओसी के लिए राज्य प्राधिकार समिति की बैठकें नियमित रूप से आयोजित नहीं किए जाने पर प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. राजीव बगरहट्टा एवं अधीक्षक डॉ. अचल शर्मा को पद से हटाया गया।मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य का पद धारण करने वाले अधिकारी से यह आशा नहीं की जा सकती है कि उनको प्रधानाचार्य की चैयरमेनशिप में गठित कमेटियों की सूचना नहीं हो।
गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा कि प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक अपने पर्यवेक्षणिक उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकते हैं। साथ ही, एसएमएस के तत्कालीन अधीक्षक डॉ. अचल शर्मा की भी पूरे प्रकरण में लापरवाही स्पष्ट नजर आती है। अब इन दोनों के विरूद्ध सीसीए नियम 16 के तहत भी कार्रवाई की जा रही है। प्रकरण में राज्य सरकार ने टोहा एक्ट के नियमों का उल्लंघन कर सोटो के चेयरमैन बने हुए डॉ. सुधीर भण्डारी को भी सोटो की स्टीयरिंग कमेटी के चैयरमेन पद से हटा दिया। डॉ. सुधीर भण्डारी जब एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य एवं नियंत्रक थे, उसी समय से अनियमितताएं एवं फर्जीवाड़ा सामने आया है। दूसरे राज्यों से भी इस संबंध में शिकायतें प्राप्त हुईं। उन्होंने बताया कि प्रधानाचार्य के पद से हटते समय ही उन्होंने सोटो चेयरमैन के पद से इस्तीफा दे दिया था, जबकि वास्तविकता यह है कि वे निरन्तर सोटो चेयरमैन के रूप में कार्य कर रहे थे। इसके पुख्ता साक्ष्य मौजूद हैं। उन्होंने मेडिकल कॉलेज के कार्यकाल में गठित सोटो की स्टेयरिंग कमेटी की संरचना में एनओटीपी के दिशा-निर्देशानुसार राज्य सरकार द्वारा नामित प्रतिनिधियों को नामित कराने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की, जिससे स्टीयरिंग कमेटी में राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं रहा। यह सम्पूर्ण स्थिति दर्शाती है कि डॉ. भण्डारी के द्वारा आरयूएचएस के वीसी बनने के बाद सोटो के कार्यों पर अपना आधिपत्य बनाया रखा गया। डॉ. सुधीर भण्डारी को सोटो की स्टीयरिंग कमिटी से तुरन्त प्रभाव से हटाया जा चुका है।
गजेंद्र सिंह खींवसर ने बताया कि इस प्रकरण में उनकी भूमिका के साक्ष्य पेश करते हुए माननीय राज्यपाल को उन्हें वीसी के पद से हटाने की अभिशंषा की। राज्य सरकार की गंभीरता के चलते डॉ. भण्डारी को आरयूएचएस के वीसी पद से इस्तीफा देना पड़ा। एसएमएस अस्पताल के सीनियर प्रोफेसर, सर्जरी डॉ. राजेन्द्र बागडी को 15.04.2022 को राज्य प्राधिकार समिति का समन्वयक नियुक्त किया गया था। डॉ. बागडी के हस्ताक्षरों से जारी ऐसे मीटिंग नोटिस पाए गए हैं, जिन पर मीटिंग की दिनांक एवं समय अंकित नहीं है।
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा ये सभी तथ्य यह दर्शाते हैं कि डॉ. राजेन्द्र बागडी को एनओसी के लिए आवेदनों के निरन्तर प्राप्त होने की पूर्ण जानकारी थी। इसके बावजूद मीटिंगों का आयोजन नहीं होने के लिए वे प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं। डॉ. बागडी ने राज्य प्राधिकार समिति के कार्यांे को गंभीरता से नहीं लियाएवं अपने कर्तव्यों की घोर उपेक्षा की, जिसका परिणाम यह हुआ कि मंत्रालयिक कार्मिक गौरव सिंह के द्वारा राज्य प्राधिकार समिति के कार्यों पर आधिपत्य बना लिया गया। डॉ. बागड़ी के विरूद्ध सख्त कार्रवाई की जा रही है। इससे पहले प्रारम्भिक जांच के बाद फर्जी एनओसी देने के आरोप में एस.एम.एस अस्पताल के सहायक प्रशासनिक अधिकारी गौरव सिंह, ई.एच.सी.सी. अस्पताल के मानव अंग प्रत्यारोपण समन्वयक अनिल जोशी एवं फोर्टिस अस्पताल के समन्वयकविनोद सिंह मानव को गिरफ्तार कर लिया गया था।
गजेंद्र सिंह खींवसर ने कहा कि गौरव सिंह को चिकित्सा विभाग ने निलम्बित भी कर दिया है। समुचित प्राधिकारी (एप्रोप्रिएट अथॉरिटी)की ओर से मामले में एफआईआर दर्ज करवाई गई है। प्रकरण में गहन जांच जारी है। प्रभावी जांच के लिए टोहा एक्ट के तहत एडिशनल डीसीपी (क्राइम) को समुचित प्राधिकारी बनाया गया है। साथ ही, मामले मंे तफ्तीश के लिए पुलिस के स्तर पर एसआईटी का गठन कर दिया गया है। एसीबी पहले से ही इस मामले में अपनी जांच कर रही है। पुलिस द्वारा आपराधिक दृष्टिकोण से इस मामले में जांच-पड़ताल की जा रही है।
प्रकरण सामने आने के बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने तत्काल प्रभाव से एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित की थी। कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट आज दे दी है। कमेटी की जांच के दौरान कई महत्वपूर्ण तथ्य हमारी जानकारी में आए हैं। प्रदेश में 15 अस्पतालों में मानव अंग प्रत्यारोपण किया जा रहा था। इनमें 4 सरकारी एवं 11 निजी अस्पताल हैं। फर्जी एनओसी का मामला सामने आने के बाद सरकार ने सभी अस्पतालों का रिकॉर्ड जांच के लिएअपनी निगरानी में ले लिया था।
गजेंद्र सिंह खींवसर ने इनमें से 933 का रिकॉर्ड उपलब्ध हो गया है। कुल 933 अंग प्रत्यारोपण में से 882 किडनी तथा 51 लीवर के ट्रांसप्लान्ट थे। प्रत्यारोपण के 269 केस ऐसे सामने आए, जिनमें डोनर एवं रिसीवर नजदीकी रिश्तेदार नहीं थे। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि एक वर्ष में हुए कुल प्रत्यारोपण में से 171 प्रत्यारोपण विदेशी नागरिकों (करीब 18 प्रतिशत) के हुए। विदेशी नागरिकों के प्रत्यारोपण मुख्यतः चार अस्पतालों में हुए। फोर्टिस अस्पताल में 103, ईएचसीसी में 34, मणिपाल हॉस्पिटल में 31 तथा महात्मा गांधी अस्पताल में 2 विदेशी नागरिकों के प्रत्यारोपण हुए। फोर्टिस, ईएचसीसी एवं मणिपाल हॉस्पिटल में नियम विरूद्ध प्रत्यारोपण पाए जाने पर इनका अंग प्रत्यारोपण का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया था।
उन्होंने कहा कि यहां एक और महत्वपूर्ण तथ्य से मैं आपको अवगत कराना चाहूंगा कि वर्ष 2020 में ही एनओसी की प्रमाणिकता को लेकर संदेह पैदा हुआ था, लेकिन उस समय इस तथ्य की अनदेखी की गई। चेन्नई एवं बुलंदशहर में प्रत्यारोपण के लिए जारी एनओसी की प्रमाणिकता जांचने के लिए एसएमएस प्रशासन को पत्र लिखा गया था, लेकिन उसकी गंभीरता को नजरअंदाज किया गया।
यदि उसी समय इस पर एक्शन लिया जाता तो इस अपराध को पहले ही रोका जा सकता था।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने प्रकरण सामने आने के बाद पूरी गंभीरता के साथ एक्शन लेते हुए प्रथम दृष्टया जिम्मेदार पाए गए अधिकारियों एवं कार्मिकों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की है।
विदेशी नागरिकों के प्रत्यारोपण एवं इसमें निजी अस्पतालों की लिप्तता की जांच पुलिस, एसीबी एवं एप्रोप्रिएट अथॉरिटी द्वारा की जा रही है। साथ ही एसआईटी का भी गठन कर दिया गया है।
जांच में जैसे-जैसे तथ्य सामने आएंगे, कार्रवाई की जाएगी। हमारा प्रयास है कि इस प्रकरण के बाद अब प्रत्यारोपण को लेकर किसी तरह की अनियमितता नहीं हो और यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी, भ्रष्टाचार मुक्त एवं ऑनलाइन बने, इसके लिए एसओपी एवं जरूरी गाइडलाइन तैयार की जा रही है। हम फुल प्रूफ सिस्टम विकसित कर राजस्थान को अंग प्रत्यारोपण की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ाएंगे।
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