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जयपुर। सुबह की पहली किरण के साथ ही जब शहर अपनी रफ़्तार पकड़ रहा था, ठीक उसी समय भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की टीम ने जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) के अधीक्षण अभियंता अविनाश शर्मा के घर और अन्य ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी। भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक धंसे इस अधिकारी के खिलाफ "ऑपरेशन 40+" चलाया गया, जिसके तहत जांच एजेंसी ने सात ठिकानों पर एक साथ सर्च ऑपरेशन किया।
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इस छापेमारी में 13 लाख रुपये नकद, 140 ग्राम सोना, 500 ग्राम चांदी, 30 लाख रुपये बैंक खातों में और 1.34 करोड़ रुपये म्यूचुअल फंड में निवेश के दस्तावेज मिले। इसके अलावा, 100 से अधिक संपत्तियों के कागजात हाथ लगे, जो अविनाश शर्मा और उनके परिजनों के नाम पर थे।
जांच टीम को यह भी पता चला कि आरोपी ने कई बेनामी संपत्तियों में निवेश किया है, जिसकी गहन जांच की जा रही है। ब्यूरो का प्राथमिक आकलन यह बता रहा है कि शर्मा ने अपने वेतन से 253% अधिक संपत्ति अर्जित की है, जो स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार का ठोस सबूत है।
40 से ज्यादा संपत्तियों का खुलासा, ऐसे खुला खेल
ACB को गोपनीय सूचना मिली थी कि अविनाश शर्मा ने अपनी वैध आय से कई गुना अधिक चल-अचल संपत्तियां अर्जित कर ली हैं। जब इसका सत्यापन किया गया तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए—40 से ज्यादा संपत्तियां। इसी के चलते "ऑपरेशन 40+" की शुरुआत की गई, जिसमें उसके पूरे साम्राज्य की परतें एक-एक करके खुलने लगीं।
जांच में कौन-कौन शामिल?
जयपुर के DIG राहुल कोटोकी की निगरानी में ACB की टीम ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। ASP ज्ञानप्रकाश नवल, इंस्पेक्टर दीनदयाल, रघुवीर शरण शर्मा और अन्य अधिकारियों की टीम ने सात अलग-अलग स्थानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की।
बेनामी संपत्तियों का जाल, परिवार भी घेरे में
जांच में यह भी सामने आया कि शर्मा ने केवल अपने नाम ही नहीं, बल्कि अपने रिश्तेदारों और करीबियों के नाम पर भी करोड़ों की संपत्तियां खरीदी हैं। म्यूचुअल फंड, बीमा पॉलिसी, और बैंकों में करोड़ों की जमा राशि इस बात का सबूत है कि यह खेल लंबे समय से खेला जा रहा था।
ACB ने सभी बैंक लॉकर सील कर दिए हैं, जिनकी तलाशी अभी बाकी है। इसके अलावा, जयपुर विकास प्राधिकरण के विभिन्न जोन में भी अलग-अलग टीमों को भेजा गया है, ताकि अविनाश शर्मा द्वारा खरीदी गई संपत्तियों की पूरी सूची तैयार की जा सके।
भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें : यह मामला सिर्फ एक अधिकारी तक सीमित नहीं है। सवाल यह भी उठता है कि अगर एक अधीक्षण अभियंता के पास इतनी अवैध संपत्ति हो सकती है, तो बड़े अधिकारियों और नेताओं की स्थिति क्या होगी? क्या यह भ्रष्टाचार की जड़ों तक पहुंचने की शुरुआत है, या सिर्फ एक दिखावटी कार्रवाई?
अब देखना यह होगा कि ACB इस मामले को कितनी गहराई तक ले जाती है और क्या सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती है या यह भी सिर्फ एक और खबर बनकर रह जाती है?
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