जयपुर।
अमर स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के अवसर पर शुक्रवार को
ऑनलाइन परिचर्चा 'स्वतंत्र यज्ञ का अग्निपुंज' का आयोजन किया गया। यह
कार्यक्रम कला और संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार और जवाहर कला केंद्र
(जेकेके), जयपुर द्वारा आयोजित 'आजादी का अमृत महोत्सव' के तहत किया गया
था। यह परिचर्चा जेकेके के फेसबुक पेज पर आयोजित की गई। परिपचर्चा महान
स्वतंत्रता सेनानी के प्रारंभिक जीवन, क्रांतिकारी गतिविधियों, मृत्यु और
विरासत पर आधारित थी। कार्यक्रम की शुरूआत अतिरिक्त महानिदेशक (प्रशासन),
जेकेके, डॉ अनुराधा गोगिया ने परिचर्चा के विषय पर प्रकाश डालते हुए की। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
ख्यातनाम
पुरातत्वविद, इतिहासकार और लेखक, डॉ रीमा हूजा ने कहा कि यह याद रखना
जरूरी है कि चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु जैसे देश के युवाओं में
भारत की आजादी के लिए ज्वलंत जुनून था। वे इस बात की परवाह नहीं करते थे कि
वे जीवित रहेंगे या मर जाएंगे या उन पर क्या विपत्तियां आएंगीं। उस समय के
क्रांतिकारी नेताओं का ध्यान ब्रिटिश सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने और
राष्ट्र की सेवा के लिए धन की व्यवस्था करने पर केंद्रित था। चंद्रशेखर
आजाद एक उत्कृष्ट निशानेबाज थे और वे अक्सर ओरछा के जंगल में निशानेबाजी का
अभ्यास करते थे और दूसरों को प्रशिक्षण देते थे। देश की आजादी के लिए
जरूरत पड़ने पर वे हथियार उठाने को भी तैयार थे। अपने जीवन में, वे पंडित
हरिशंकर ब्रम्हचारी के नाम से सतर नदी के पास भी रहे और वहां बच्चों को
पढ़ाया। हालांकि उनका भौतिक रूप नहीं रहा, लेकिन उनकी अमर आत्मा भविष्य की
पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। इन लोगों को भगवान के रूप में नहीं बल्कि
नश्वर पुरुषों के रूप में याद किया जाना चाहिए जिन्होंने कष्ट सहे, जिनका
परिवार और दोस्त होते हुए भी उन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना सब कुछ
बलिदान कर दिया।
चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी जीवन के बारे में
बात करते हुए इतिहासकार, शिक्षाविद, कवि और लेखक डॉ अभिमन्यु सिंह आढा ने
कहा कि 1925 में शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली काकोरी ट्रेन को उस समय के
कुछ चुने हुए क्रांतिकारी नेताओं ने लूट लिया था, जिसमें चंद्रशेखर आजाद भी
शामिल थे। उस ट्रेन में ब्रिटिश खजाने से धन ले जाया जा रहा था, जिसे
क्रांति के लिए हथियार खरीदने के पैसे एकत्रित करने के लिए लूट लिया गया
था। आजाद पुलिस से बचने में कामयाब रहे। इसी तरह, वह और भगत प्रिय मित्र थे
और साथ में दोनों ने बहुत काम किए थे। उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन
एसोसिएशन (एचआरए) को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) में
पुनर्गठित किया और इसकी गतिविधियों को एक साथ अंजाम दिया। उन्होंने आगे
कहा कि इन क्रांतिकारी नेताओं को दूसरों से बहुत समर्थन मिला, इसलिए नहीं
कि वे युवा, गर्म-जोश वाले पुरुष थे, जो अपने मजे के लिए लोगों की हत्या
करते थे, बल्कि इसलिए कि वे अच्छी तरह से शिक्षित, बौद्धिक और शिष्ट पुरुष
थे जो कि अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक सुनियोजित मिशन
पर थे।
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