मुहर्रम की दूसरी तारीख को जब हुसैन कर्बला पहुंचे , उस समय उनके साथ एक
छोटा सा लश्कर था, जिसमें औरतों से लेकर छोटे बच्चों तक कुल मिलाकर 72 लोग
शामिल थे। इसी दौरान कर्बला के पास यजीद ने उनके काफिले को घेर लिया और खुद
को खलीफा मानने के लिए उन पर दबाव बनाया, लेकिन इमाम हुसैन ने साफ इंकार
कर दिया। ये भी पढ़ें - यहां मुस्लिम है देवी मां का पुजारी, मां की अप्रसन्नता पर पानी हो जाता है लाल
हुसैन के कर्बला पहुंचने के बाद मुहर्रम की 7 तारीख
को इमाम हुसैने के पास खाने पीने की जितनी भी चीजें थीं वे सभी खत्म हो
चुकीं थीं, ये देखकर यजीद ने हुसैन के लश्कर का पानी भी बंद कर दिया था।
मुहर्रम की 7 तारीख से 10 तारीख तक इमाम हुसैन और उनके काफिले के लोग भूखे
प्यास रहे। लेकिन इमाम हुसैन सब्र से काम लेते रहे और जंग को टालते रहे।
इन्ही दिनों में इमाम हुसैन ने अपने काफिले में मौजूद लोगों को वहां से
चले जाने के लिए कहा, लेकिन कोई भी हुसैन को छोड़कर नहीं गया। मुहर्रम की
10 तारीख को यजीद की फौज ने हुसैन और उनके साथियों पर हमला कर दिया।
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