दिन की भक्तिमय शुरूआत जैसलमेर के बोहा गांव से आये पुन्माराम और साथियों
के भजन गायन से हुई। तन्दूरा पर कृष्ण, मीरा के भजनों के साथ दर्शकों ने
भक्ति, प्रेम और विरह का भाव दिल से महसूस किया। भृतहरी कथा और देवनारायण
महागाथा जैसी संगीतमय कथाओं ने माहौल को न केवल भक्ति रस से भरा बल्कि जीवन
का सार भी बताया। इसके अलावा कथोड़ी जनजातीय संगीत कार्यक्रम में दर्षकों
ने थालीसर, पावरी, तारपी, टापरा और घोरलिया जैसे लुप्तप्रायः वाद्य यंत्रों
की धुनों को आश्चर्य से सुना। कथोड़ी जनजाति के ये वाद्य यंत्र उदयपुर के
दूर-दराज क्षेत्रों में रहने वाले इस जनजाति के लोगों द्वारा खुद ही तैयार
किये जाते हैं। इन वाद्यों को ये लोग शादी-विवाह व नवरात्रि में बजाते हैं।
आज
ये सभी कलाए लुप्त होने के कगार पर हैं व कुछ कलाओं के कलाकार गिने-चुने
ही बचे हैं। इन कलाओं को लोगों तक पहुंचाने और इनके संरक्षण के लिए मोमासर
वासियों के सहयोग से हर साल यह आयोजन करते हैं। इस नवे आयोजन में राजस्थान
की विभिन्न क्षेत्रीय संस्कृतियों के 200 से ज़्यादा कलाकार अपनी
प्रस्तुतियां दे रहे हैं और अपने हस्त कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दो
दिवसीय उत्सव में 30 से अधिक गांवों, कस्बों, शहरों और देष-विदेष के लगभग
10,000 लोग इस वर्ष शामिल हुए है।
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