जयपुर । जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में परम्परागत कव्वाली एवं सूफी शेरो-शायरी की शानदार प्रस्तुति के साथ तीन दिवसीय संगीत समारोह ‘सुमिरन‘ का रविवार को समापन हुआ। कार्यक्रम में आसिफ एवं आरिफ पार्टी ने एक-से-बढ़कर-एक कलाम पेश कर समां बांधा दिया और लोगों की ढ़ेर सारी वाहवाही लूटी। कव्वालों ने अमीर खुसरो, बुल्ले शाह, समर जलालाबादी, बिस्मिल साहब, बेदम वारसी, जिगर मुरादाबादी, आदि के बेहतरीन कलाम पेश किये। यह कार्यक्रम टोंक स्थित मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी एवं फारसी अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रायोजित किया गया था। इस अवसर पर जेकेके के अतिरिक्त महानिदेशक, फुरकान खान भी उपस्थित थे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कार्यक्रम का आरम्भ हम्द की रूबाइयों से हुआ। उन्होंने ‘‘मेरे मौला अपने बंदों को तु हाजत से फजु देता है, लेकिन मुझे हैरत है कि क्यूं देता है‘‘ से आरम्भ कर समर जलालाबादी के कलाम ‘‘आज जिनकी आमद से हर तरफ उजाला है‘‘ सुना कर सभी की दाद पाई। बेदम वारसी का तसव्वुर ‘‘जो मुझे मैं बोलता है, मैं नहीं हुं, ये जलवा यार का है, मैं नहीं हुं‘‘ भी पेश किया। कव्वाली की महफिल में रंग जमाते हुए कव्वालों ने सूफी संत बुल्ले शाह के ‘‘दमादम मस्त कलंदर‘‘ और अमीर खुसरों की प्रसिद्ध रचना ‘‘ऐ री सखी मोरे पिया घर आए‘‘ सुना कर सभी को झूमने पर मजबूर कर दिया। इस अवसर पर उन्होंने बिस्मिल साहब के कलाम ‘‘तुम दीनदयाल हो मनमोहन या ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन‘‘ सुना कर धार्मिक सद्भाव का संदेश भी दिया। कलाकारों द्वारा पेश की गई जिगर मुरादाबादी की गजल ‘‘बदली तेरी नजर तो नजारे बदल गए‘‘ को सभी ने बेहद पसंद किया।
कव्वाली गायन में खालिद हुसैन, अकबर हुसैन, जाहिद हुसैन, सहादत अली ने मोहम्मद आसिफ एवं मोहम्मद आरिफ को संगत दी। कार्यक्रम में शब्बीर हुसैन, नदीम अहमद ने ढोलक पर, शराफत हुसैन ने तबले पर और मुन्ना भाई ने बैंजो पर संगत की।
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