जयपुर। एसीबी की ओर से मेयर मुनेश गुर्जर के खिलाफ 19 सितंबर को चार्जशीट पेश करने के दौरान मेयर को उपस्थिति से छूट देने के एसीबी कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है ।
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मुनेश गुर्जर ने अपने अधिवक्ता के जरिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करवाया कि वह बिमार है और डॉक्टर ने उन्हें सात दिन का बेड रेस्ट करने की सलाह दी है।
शिकायतकर्ता के अधिवक्ता पूनम चंद भंडारी ने इसका विरोध किया था लेकिन कोर्ट ने प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर लिया और उदार रूख अपनाते हुए 5 अक्टूबर 2024 को पेश होने की अनुमति दी।
इस आदेश के विरुद्ध परिवादी सुधांशु गिल के अधिवता ने हाईकोर्ट में सोमवार को फौजदारी याचिका पेश कर मांग की है कि एसीबी कोर्ट का आदेश निरस्त किया जाए और मुनेश गुर्जर को तत्काल कोर्ट में सरेंडर करने के निर्देश दिए जाए।
याचिका में कहा गया है कि एसीबी कोर्ट ने कानून के विरुद्ध आदेश दिया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि अभियुक्त को प्रसंज्ञान लेने से पूर्व कोर्ट में उपस्थित होने से छूट दी जाय कोर्ट ने गलती की है तथा भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध उदार रख अपनाया है जिससे आम जनता में गलत मैसेज जाता है कि बड़े लोगों और भ्रष्टाचारियों के मामले में न्यायालय सख्त नहीं है जबकि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाना चाहिए।
इसके अलावा मेयर ने बीमारी का बहाना बनाया है इसलिए मेडिकल बोर्ड गठित कर उसकी बीमारी की जांच की जानी चाहिए थी। सरकार और जांच एजेंसी भ्रष्टाचारी मुनेश गुर्जर को बचाना चाहती है इसलिए एसीबी ने और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने मुनेश गुर्जर के प्रार्थना पत्र का विरोध नहीं किया बल्कि सहमति जताई और कोर्ट ने भी मुनेश गुर्जर को 16 दिन का समय पेश होने के लिए दिया है जबकि डॉक्टर की पर्ची के अनुसार उसे सात दिन के आराम की सलाह दी गई थी।
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