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लोक आस्था और सामाजिक समरसता का निराला संगम स्थल है जोधपुर का व्यास मन्दिर

-गोपेंद्र नाथ भट्ट-

जयपुर ।पश्चिमी राजस्थान का खूबसूरत शहर जोधपुर,राजधानी जयपुर के बाद प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा नगर है।यहाँ के ऐतिहासिक मेहरानगढ फ़ोर्ट के ऊपर से शहर का विहंगम दृश्य देखने लायक़ है। यहाँ आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों की आँखें दुर्ग की तलहटी में स्थित पुराने शहर के सफ़ेदी में घुले नीले रंग के मकानों पर टीक जाती हैं। वे कौतूहल वश पूछ बेठतें है कि खूबसूरत जोधपुरी रंगीन पत्थरों के मकानों के मध्य यें कौन सी बस्ती है ? पर्यटक गाईड उनकी शंका का निवारण करते हुए बताते है कि यें पुष्करना और श्रीमाली पुरोहितों के मकान है,जिन्हें स्थानीय लोग ‘भाभा’ कहते है। बताया जाता है कि जोधपुर के महाराजाओं ने अपने शासन काल में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को आमन्त्रित कर नगर में बसाया था और उनकी विशिष्ट पहचान को बनायें रखने के लिए उनके मकानों को इस विशेष शैली में रंगवाया गया था। जोधपुर में इस परम्परा के अनुरूप पुरोहित ब्राह्मणों के मकान आज भी अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए है।

जोधपुर महाराजा जब इन पुरोहितों को अपने राज्य में लाए थे तब उन्होंने यहाँ के प्राचीन मन्दिरों सहित पुरोहितों के सुझाव से बनवाए मन्दिरों की सेवा पूजा और अनुष्ठानों आदि की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी थी। महाराजा बखतसिंह जी के साथ नागौर से चण्डवाणी जोशी भाऊजी मनरूप जी यहां आए थे। बाद में महाराजा ने इन्हें राज व्यास की पदवी दी और रहने के लिए बजाजी की पोल दी। जो आजकल ‘भैरू दास जी की पोल’ के नाम से प्रसिद्ध है ।

शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है व्यास मन्दिर

जोधपुर शहर के भीतरी भाग में स्थित मेहरानगढ दुर्ग सहित अन्य मंदिरों के साथ ही नवचौकिया मोहल्ले में कोलरी मोड़ के नुक्कड़ पर स्थित श्री नवल बिहारी जी और रघुनाथ जी के मंदिर जोकि व्यास मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है इसी परम्परा का एक हिस्सा है। यह मंदिर 236 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। इस मन्दिर में एक ही छत के नीचे भगवान राम, भगवान कृष्ण, शिवजी, हनुमान जी और अन्य देवी-देवताओं की दुर्लभ मूर्तियाँ है। मन्दिर की स्थापत्य कला और शिखर के अंदरूनी भाग में छत के नीचे उकेरी गई शिल्प और चित्रकला न केवल उत्कृष्ट शैली की है वरन अद्भुत एवं बेजोड़ है।

चण्ढवाणी जोशी भाऊजी मनरूप जी द्वारा निर्मित मंदिर कोलरी में प्रवेश करते समय दाई तरफ बना है।मंदिर के बाहर पत्थर के दो शेर बने हुए हैं।
जोशी त्रिलोक चन्द जी के टीप्पणे में लिखा है विक्रम संवत 1841 जेठ सुद पंचमी को श्री नवल बिहारी जी रघुनाथ जी रो पाटोत्सव भाऊजी मनरुपजी नवचौकिया में कोलरी में पधराया। नीचे महादेव का मन्दिर भी बनवा दिया। नवचौकिया में जो दुकानें थीं उन्हें ‘हाटा’ कहते थे तथा उनके उपर वाले हिस्से को ‘हाटा का डागला ‘कहते थे। कभी कोई जलूस राजा की सवारी आदि निकलते तब लोग प्रायः हाटो के डागले पर बैठा करते थे। सम्भवतः इसी कारण महादेव जी का नाम श्री ‘हाटलेश्वर महादेव’ रख दिया था।

मुख्य सड़क से कुछ ऊंचाई पर बने हुए इस मन्दिर में पहुँचने के लिए दस सीढ़ियाँ हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही चौक में दो मंदिर दिखाई देते है ,जिसमें पहला मंदिर श्री रघुनाथ जी का है। इसमें भगवान श्रीराम,लक्ष्मण एवं मां जानकी सीता जी (राघवेंद्र सरकार) की काले कसौटी पत्थर की दुर्लभ प्रतिभाएं स्थापित है । काले रंग का कसौटी पत्थर सोने एवं चाँदी की शुद्धता की जाँच करने में भी प्रयोग होता है। तीनों मूर्तियों में श्री राम जी बिना किसी शस्त्र एवं श्री लक्ष्मण जी हाथ में दिव्य धनुष बाण लिए हुए हैं जबकि मां सीता जी अमृत घट लिए हुए है। किवदन्तियाँ है कि सीता जी के बलात अपहरण के बाद भगवान राम और लंकाधिपति रावण के मध्य हुए घमासान युद्ध के पश्चात मां सीताजी ने इसी अमृत कलश से वानर सेना और अन्य योद्धाओं को पुनः जीवित किया था। जोधपुर में रावण का चबूतरा नामक एक स्थान भी है जहां हर वर्ष दशहरा को रावण दहन होता है।
उक्त मंदिर में राम दरबार के ठीक सामने पंचमुखी बालाजी की दिव्य मूर्ति स्थापित है । यह मूर्ति विलक्षण श्री सौभाग्य एवं चमत्कार पूर्ण बतायी जाती है । मूर्ति के पांच मुख एवं दो हाथ है ,जो श्रीराम उपासना में जुड़े हूए हैं ।


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Web Title-Jodhpur Vyas Mandir is a unique confluence of folk faith and social harmony.
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