जयपुर। कार्यस्थल पर शर्मिंदगी प्रमुख कारण है, जिसकी वजह से महिलाएं यौन उत्पीड़न व दुराचार के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आती हैं। जब किसी महिला का यौन शोषण होता है तो वह भावनात्मक रूप से अत्यधिक निराशा हो जाती है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को पुरुषों द्वारा ऐसे कृत्यों को सहन करना पड़ता है। यह कहना था राजस्थान सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग की प्रमुख शासन सचिव रोली सिंह का। वे बुधवार को जयपुर में पीएचडीसीसीआई द्वारा ‘सैक्सुअल हरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस’ विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रही थीं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने आगे कहा कि ये मुद्दे पहले भी ज्वलंत माने जाते थे, लेकिन अब सोशल मीडिया के साथ चीजें बदल रही हैं। लैंगिक समानता को एचआर मेंडेट का भाग होना चाहिए और संस्थानों की ओर से अपनी आंतरिक समिति के कॉन्टेक्ट नम्बरों को प्राथमिकता के साथ प्रदर्शित करना चाहिए। सैक्सुअल हरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के अनुसार सभी संस्थानों के अधिकारियों को प्रत्येक वर्ष यौन उत्पीड़न पर नियमित प्रशिक्षण दिया जाना अनिवार्य है।
इस अवसर पर दिल्ली हाई कोर्ट की वकील प्रिया खन्ना ने महिला यौन उत्पीड़न के बारे में जागरूक करने पर एक टेक्निकल सेशन लिया। उन्होंने सैक्सुअल हरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013 के विभिन्न प्रावधानों की जानकारी भी दी। उन्होंने बताया कि अनुचित स्पर्श (शारीरिक सम्पर्क व इसका प्रयास करना) यौन संबंध बनाने की मांग करना, अश्लील साहित्य या सामग्री दिखाना तथा किसी भी अन्य प्रकार के अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर मौखिक आचरण जैसे कृत्यों में से कोई एक या एक से अधिक कृत्य यौन उत्पीड़न माने जाते हैं।
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