जयपुर। पश्चिमी समाज की बौद्धिकता को ‘विज्ञान‘ एवं ‘मानविकी‘ दो संस्कृतियों में विभाजित किया कर दिया गया है और दुनिया की समस्याओं को हल करने में यही सबसे बड़ा अवरोध है। वर्तमान समय में ऐसे भी अनेक लोग हैं, जो मानवीकी पृष्ठभूमि से होने के बावजूद अत्यंत सफल एवं प्रभावी एप्स एवं पोर्टल बनाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि मानवीय मानसिकता किस प्रकार से तकनीक के साथ-साथ चलती है। यह कहना था ‘द फजी एंड द टेकी‘ पुस्तक के लेखक स्कॉट हार्टले का। वे जंतर-मंतर में इस पुस्तक के बारे में आयोजित चर्चा को संबोधित कर रह थे। इस कार्यक्रम का आयोजन राजस्थान सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा रजत बुक कॉर्नर और पेंगुइन के सहयोग से किया गया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
स्कॉट ने कहा कि टीम मैसेजिंग के एप ‘स्लैक‘ के संस्थापक स्टीवर्ट बटरफील्ड के पास फिलोसफी की दो डिग्रियां थीं और ई-कॉमर्स समूह ‘अलीबाबा‘ के संस्थापक, जैक मा ने इंग्लिश लिटरेचर में डिग्रियां ले रखी थीं। इस प्रकार इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा रहा है कि ऐसे लोग जो तकनीकी विशेषज्ञ नहीं - सर्वाधिक रचनात्मक एवं सफल नए व्यावसायिक विचारों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अपनी पुस्तक की जानकारी देते हुए स्कॉट हार्टले ने कहा कि उन्होंने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान का अध्ययन करते समय पहली बार ‘फजी‘ और ‘टेकी‘ शब्द सुने। यदि किसी ने हृयूमेनिटी अथवा सोशल साइंस में विशेषज्ञता हासिल की थी, तो वह ‘फजी‘ कहलाता था और इसी प्रकार यदि किसी ने कंप्यूटर साइंस में महारथ हासिल की है तो उसे ‘टेकी‘ कहा जाता था।
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