जयपुर। राजस्थान में पिछले डेढ़ महीने से आपदा मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के इस्तीफे ने एक नई राजनीतिक दुविधा पैदा कर दी है। इस्तीफा न स्वीकार किया गया है, न ही मंत्रालय में कोई ठोस कामकाज हो रहा है। ऐसे में जब राज्य में अतिवृष्टि से आपदा की स्थिति विकट है, जनता अपने आप को सरकार की निष्क्रियता के कारण असहाय महसूस कर रही है।
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राज्य के सभी जिलों में आपदा प्रबंधन की स्थिति अत्यंत दयनीय है। लोगों को यह तक नहीं पता कि वास्तव में आपदा प्रबंधन हो भी रहा है या नहीं। आपदा मंत्री का इस्तीफा देने के बावजूद, सरकार ने इस संबंध में कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है, जिससे जनता के हितों पर गंभीर आघात हुआ है।
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की सियासत और उनके इस्तीफे को लेकर विभिन्न कहानियां चल रही हैं। जहां उनके समर्थक इसे राजनीतिक समझौते के रूप में देख रहे हैं, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी इसे सियासी फायदे-नुकसान के खेल के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। भले ही मीणा आपदा राहत का काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन वे अब भी मंत्री पद की हैसियत से अन्य मंत्रियों को नोटशीट भेज रहे हैं, जिनमें अधिकांश कर्मचारी तबादलों से संबंधित हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेताओं ने इस स्थिति को लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से सवाल पूछे हैं कि राज्य में आपदा मंत्री की स्थिति क्या है। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने यह स्पष्ट किया है कि मंत्री का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है और वे अपना कार्यभार संभालेंगे।
राज्य में हुई बारिश और बाढ़ के प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करने के लिए मीणा ने हेलिकॉप्टर की मांग की थी, लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया। इसके अलावा, भरतपुर में बाणगंगा नदी में डूबने से मरने वाले युवकों के परिवारों से मिलने गए मीणा के पहुंचने से पहले ही मुआवजों के चेक उनके परिवारों को सौंप दिए गए थे। ये घटनाएं राजनीति में चर्चा का विषय बन गई हैं, जो कि इस मामले की संवेदनशीलता को और भी बढ़ा देती हैं।
कुल मिलाकर, राजस्थान में आपदा प्रबंधन की स्थिति न सिर्फ शासन की कमी को उजागर करती है, बल्कि राजनीतिक रस्साकशी में जनता की अनदेखी भी सामने लाती है। सरकार को इस मामले में शीघ्रता से हस्तक्षेप कर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
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