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सैयद हबीब, जयपुर।
पहलगाम में धार्मिक पहचान पूछ कर 26 निर्दोषों निहत्थों की जान लेने वाले आतंकियों का क्या मकसद पूरा हो गया है। साथ ही कुछ कट्टरपंथी लोग क्या उनके मकसद को हवा दे रहे हैं? देश दुनिया में आतंकी हमले की कड़ी मजम्मत की जा रही है। आतंकवाद के खिलाफ पूरा देश एकजुट दिखाई दे रहा हैं, लेकिन सोशल मीडिया के हवाले से जो वीडियो और जानकारी सामने आ रही है, उससे लगता है कि शायद आतंकवादियों का मकसद "पूरी तरह नहीं सही, थोड़ा बहुत" तो काम कर ही गया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सोशल मीडिया पर बहसें चल रही हैं, कुछ 'डिजिटल क्रांतिकारी' गरज रहे हैं — "अब उन्हें सबक सिखाना होगा!" और कुछ वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी के टॉपर कह रहे हैं — "अब और सहन नहीं!" पहलगाम की घटना के बाद उदयपुर में एक मौलाना की पिटाई कर देना, जयपुर में जामा मस्जिद के बाहर विवाद जैसी घटनाएं यही संदेश दे रही है। कई जगह से ऐसी भी खबरें आ रही है कि धार्मिक पहचान के आधार पर मुसलमानों को टारगेट किया गया है।
लेकिन ज़रा ठहरिए...
क्या यही तो आतंकवादी नहीं चाहते थे?
क्या उनके मकसद में सिर्फ गोलियों से मारना था, या फिर हमारे भीतर भी ज़हर भर देना था?
क्या उन्हें सिर्फ पहलगाम का खून चाहिए था या देशभर के हर कोने में मानवता का खून बहता देखना था?
और अफसोस की बात है कि कहीं-कहीं लोग वही कर रहे हैं — उसी नफरत को जी रहे हैं, जिसे दुश्मन ने बड़ी होशियारी से बोया था।
लेकिन रुको... भारत वो देश है जो राख से भी कमल उगाना जानता है।यहां जलियांवाला बाग के बाद भगत सिंह भी पैदा होते हैं, और 26/11 के बाद मुंबई फिर मुस्कुराना सीखती है।
आज अगर कुछ लोग नफरती भाषा बोल रहे हैं, तो हजारों लोग वहीं पास में एक-दूसरे को गले भी लगा रहे हैं।अगर कहीं एक मौलाना को मारा गया, तो कहीं एक हिंदू युवक ने मुसलमान पड़ोसी को अपने घर में छुपाकर बचाया भी है। यह भारत है साहब, यहां नफरत कुछ घंटे की होती है... मोहब्बत सदियों की।
जहां तक पाकिस्तान की बात है — वो बेचारा अब 'पानी-पानी' हो रहा है।भारत ने बिना एक भी गोली चलाए जब पानी रोकने की बात कही, तो वहां के हुक्मरानों के होश उड़ गए।
इस बार गोली नहीं, बूंद-बूंद से बदला होगा।
भारत ने अब ‘डिप्लोमैटिक स्ट्राइक’ की राह पकड़ी है।युद्ध नहीं, बुद्ध का रास्ता अपनाया है।और यह वो रास्ता है जो दुश्मन को भी सोचने पर मजबूर कर देगा कि —"अब इनसे टकराना अपने ही घर में आग लगाना है।"
हां, हम ग़मगीन हैं, लेकिन टूटे नहीं हैं।हां, हमें गुस्सा है, लेकिन हमने होश नहीं खोया है।हां, हम घायल हैं, लेकिन घुटनों पर नहीं हैं।
हम वो देश हैं जो दुःख में भी दीप जलाता है।जो मातम में भी उम्मीद बोता है।और जो आतंक की साजिश को इंसानियत की ताकत से मात देना जानता है।
तो सवाल फिर से वही है — क्या आतंकियों का मकसद पूरा हो गया?नहीं जनाब, उनका मकसद तब पूरा होता जब हम एक-दूसरे से नफरत करना सीख जाते। लेकिन हम तो वो लोग हैं जो "ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम" गाते हैं।
अब फैसला आपका है — आप आतंकवाद के खिलाफ हैं या आतंकियों की सोच के साथ?
क्योंकि देश तभी जिएगा... जब हम साथ जिएंगे।
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