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नई दिल्ली । कुछ जननेता ऐसे होते है,जिन्हें हर कोई राजनैतिक चश्में से नहीं देखता,बल्कि उनका सम्मान दलगत राजनीति से ऊपर किया जाता है । ऐसे ही महान व्यक्तित्व के धनी शख़्सियत थे पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी जिन्हें उनके घूर राजनैतिक विरोधी भी दिल से सम्मान देते थे।
वाजपेयी और राजस्थान का गहरा नाता रहा है। उनसे जुड़ी कई यादें और कई किस्से आज भी यहां के बाशिंदों की जुबान पर ताज़ा है।
भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति एवं राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत भैरोसिंह शेखावत दिवंगत वाजपेयी के बहुत निकट साथी थे। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनकी तिगड़ी राजनैतिक हलकों में चर्चित जोड़ी थी। भारतीय जनसंघ की पहली पीढ़ी ये तीनों प्रमुख नेता कालान्तर में देश की राजनीति श्रितिज की ऊँचाइयों को छूने में सफल हुए।
भैरोसिंह शेखावत व वाजपेयी की दोस्ती किसी से छुपी नहीं रही। शेखावत की पुत्री के नरपत सिंह राजवी से हुई शादी में वाजपेयी ने रस्मों रिवाजों का निर्वहन किया था। आपातकाल के दौरान दिल्ली के तिहाड़ जेल में इनकी हाज़िर जवाबी एवं मज़ाक़िया अन्दाज़ व हँसी मज़ाक़ तत्कालीन प्रतिपक्ष नेताओं जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी शामिल थे,सबके बीच चर्चा का विषय बनी रहती थी।वाजपेयी शेखावत व आडवाणी की प्रगाढ़ता और चन्द्रशेखर के साथ कारण शेखावत के लिए पहले राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने व बाद में देश का उप राष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
वाजपेयी,अडवाणी ब शेखावत की तिगड़ी जब कभी भी एक जगह मिलती थी तो किस्सागोई, बात पर अट्टाहास और व्यंग्य विनोद हुए बिना नहीं रहती थी। ख़ास कर खाने के शौक़ीन वाजपेयी के लिए विशेष मिष्ठान्न जिनमें रबड़ी, मिश्रीमावा, भगत के लड्डू, गुलाबसकरी आदि तो अवश्य ही मंगवाई जाती थी।
शेखावत की ही तरह पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवन्त सिंह और राजस्थान के शिव कुमार पारीक भी अटल बिहारी वाजपेयी के बहुत ही निकट रहें। उन्होंने जसवन्त सिंह को अपने प्रधानमंत्रित्व काल में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी। इसी प्रकार वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में शिव कुमार पारीक तो जीवन पर्यन्त उनके साथ साये की तरह रहे। शंकर भगवान के परम भक्त पारीक का रौबदार चेहरा,छह फुट लंबा शरीर,घनी मूंछें उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगती थी,मगर वाजपेयी के साथ पारीक का रिश्ता राम-हनुमान जैसा था।उनका वाजपेयी के साथ जुड़ना किसी इत्तेफाक से कम नहीं था। वाजपेयी से जुड़ने से पहले शिवकुमार आरएसएस से जुड़े थे।अपनी फिटनेस के चलते वो औरों से अलग ही दिखते थे।साथ ही वे मृदुभाषी भी थे। उनकी ये दोनों विशेषताएं वाजपेयी को बहुत रास आई। दोनों की नजदीकी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निधन के बाद से शुरु हुई। जब वाजपेयी ने बलरामपुर, उत्तरप्रदेश से चुनाव लड़ा,तब किसी ने सुझाव दिया कि वाजपेयी को एक ऐसे सहयोगी कि जरूरत है जो उनकी सुरक्षा का भी ध्यान रखें। बहुत तलाश के बाद नानाजी देखमुख ने राजस्थान की राजधानी गुलाबी शहर जयपुर में रह रहे शिवकुमार पारीक का नाम उन्हें सुझाया।बाद में पारीक सभी के साथ इस तरह घुल-मिल गए कि वाजपेयी की गैरमौजूदगी में लखनऊ में उनका सारा काम-काज वे ही संभालते नजर आते थे। उन्होंने वाजपेयी के एक पारिवारिक सदस्य की तरह जीवन पर्यन्त उनका साथ निभाया।
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