गिरिराज अग्रवाल
जयपुर। भजनलाल सरकार में हालात ये हैं कि खुद कैबिनेट मंत्री भी न्याय से महरूम हैं। यह तो एक संकेत है कि आम आदमी की न्याय की उम्मीदें कितनी बची हैं। कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उनके मामलों में न तो एफआईआर दर्ज हुई और न ही सरकार की ओर से कोई सुनवाई हुई। उन्हें अपने अधिकारों के लिए गृह राज्यमंत्री के पास जाकर गिड़गिड़ाना पड़ा। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस बीच, करौली जिले के हिंडौन में एक मूक बधिर बालिका से हुए रेप और हत्या के मामले में न्याय की मांग को लेकर लोग जयपुर में धरना दे रहे हैं। डॉ. मीणा ने इस मामले में भी कई बार अधिकारियों से मुलाकात की, लेकिन सरकार की अनसुनी जारी है।
किरोड़ीलाल मीणा, जिन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, गहलोत राज में कथित 3500 करोड़ के घोटाले पर भी सख्त हैं। उन्होंने गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढ़म से मिलकर एफआईआर दर्ज कराने की मांग की, लेकिन इस संबंध में तीन दिन बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्या यह संकेत नहीं है कि सत्ता के गलियारों में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हैं कि उन्हें उखाड़ने की किसी की हिम्मत नहीं?
उन्होंने डीओआईटी से जुड़े कई प्रमुख मुद्दे उठाए हैं, जिनमें मेन पावर, डिजिटल पेमेंट, और ऑप्टिकल केबल प्रोजेक्ट जैसे घोटाले शामिल हैं। लेकिन, मंत्री जवाहर सिंह का बयान मात्र औपचारिकता ही लगती है, क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ मीणा की यह मुहिम अब तक निष्प्रभावी नजर आ रही है।
इसी बीच, उद्योग मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को भी न्याय के लिए थाने का दरवाजा खटखटाना पड़ा। यह सच्चाई है कि जब खुद मंत्री न्याय के लिए भटक रहे हैं, तो आम आदमी का क्या होगा? यह सरकार की नाकामी को दर्शाता है कि क्या वे सच में भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ हैं, या यह केवल एक दिखावा है?
इस स्थिति में सवाल यही है: आम आदमी आखिर कहां जाए जब न्याय के दरवाजे खुद मंत्रियों के लिए भी बंद हों?
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