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खबर का असरः सरकारी नाले पर कब्जे और कैप्सटन मीटर्स भूमि आवंटन में अनियमितताओं की ईडी, सीबीआई से हो जांच

जेडीए के निदेशक (विधि) ने फाइल पर दी ओपिनियिन; अब जेडीए आयुक्त को करना है जांच का निर्णय
-गिरिराज अग्रवाल-
जयपुर। जवाहरलाल नेहरू मार्ग स्थित सरकारी नाले पर ज्वैल्स ऑफ इंडिया, जय ड्रिंक्स और जयपुरिया ट्रस्ट द्वारा कब्जा करने और भू-रूपांतरण करने को लेकर खासखबर डॉट कॉम के उठाए मुद्दों की अब जेडीए के डायरेक्टर (लॉ) ने भी पुष्टि कर दी है। उनकी ओपिनियन वाली नोटशीट सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। फाइल की नोटशीट पर दी गई ओपिनियन में डॉयरेक्ट लॉ ने गंभीर टिप्पणी करते हुए पूरे प्रकरण की एसीडी, ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों से जांच कराए जाने की सिफारिश की है।
ज्वैल्स ऑफ इंडिया वाले प्रोजेक्ट समेत जयपुरिया ट्रस्ट की जमीन के भू-रूपांतरण को लेकर डायरेक्टर लॉ ने विभिन्न सरकारी कमेटियों की कार्यवाही (निर्णयों, सिफारिशों) पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहाकि अगर जेडीए और नगरीय विकास, आवासन एवं स्वायत्त शासन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी ऐसी अनियमितताओं की भी निगरानी नहीं करेंगे, तो कौन करेगा। क्योंकि इससे सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।
बता दें कि खासखबर डॉट कॉम ने पिछले दिनों इससे संबंधित खबर में कहा था कि ज्वैल्स ऑफ इंडिया में पूर्व आईएएस राजीव स्वरूप समेत कई आईएएस, आईपीएस, आईआरएस, आईएफएस अफसरों ने करोड़ों रुपए के फ्लैट लिए हुए हैं। करोड़ों इसलिए क्योंकि ज्वैल्स ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर यहां 3, 4, 5 बीएचके फ्लैट की कीमत 3.5 से 7 करोड़ रुपए तक दर्शाई हुई है। ये तमाम अफसर अपनी पूरी नौकरी में नियम-कानूनों की व्याख्या करते रहे। फिर भी इस प्रोजेक्ट के मामले में क्यों आंखें बंद कर लीं। जबकि, सांगानेर तहसील के ग्राम झालाना डूंगर के खसरा नंबर 180, 181, 184 और 186 की जिस जमीन पर ज्वैल्स ऑफ इंडिया का रेजीडेंशियल कम कॉमर्शियल प्रोजेक्ट बना है, उसका टाइटल जेडीए के हित में अब भी क्लियर नहीं है।
दरअसल, यहां की जमीन दो अलग-अलग आदेश (लीजडीड) के जरिए राज्य सरकार ने उद्योग लगाने के लिए मैसर्स कैप्सटन मीटर्स इंडिया लिमिटेड को 99 साल की लीज पर वर्ष 1965 में अलॉट की थी। यह अवधि सन् 2064 तक होती है। राज्य सरकार के पोर्टल अपना खाता पर आज भी यह जमीन मैसर्स कैप्सटन मीटर्स इंडिया के नाम औद्योगिक प्रयोजन के लिए 99 साल की लीज दर्ज है। लेकिन, जेडीए ने इस जमीन पर भू राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 90बी के तहत 99 साल का लीज पट्टा जारी कर दिया। इससे जमीन की लीज स्वतः ही 43 साल के लिए आगे बढ़ गई। राजस्व मामलों के एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस हिसाब से इस जमीन का मालिक उद्योग विभाग हुआ। जेडीए इस पर पट्टा जारी नहीं कर सकता था।
एक्सपर्ट्स की मानें तो जमीन का अवाप्ति के बाद कब्जा लिए जाने के पश्चात धारा 48 के तहत यह जमीन अवाप्ति से मुक्त ही नहीं हो सकती थी। लेकिन, तत्समय राज्य सरकार ने इसके स्वामित्व की 133 बीघा भूमि के अलावा जो 75 बीघा राजकीय/सिवायचक भूमि इसे उद्योग चलाने के लिए आवंटित की थी, उसका भी भू-उपयोग परिवर्तन बिना प्रचलित प्रक्रिया अपनाए धारा 48 के आदेश में ही कर दिया। इसकी जांच जरूरी है।
7.5 एकड़ जमीन बिक्री की राशि पर भी सवालः
डॉयरेक्टर (लॉ) ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि ऑरफनेज सेंटर को बनाने और चलाने के लिए धारा 48 में अवाप्ति से मुक्त की गई 7.5 एकड भूमि की बिक्री के रूप में प्राप्त होने वाले धन के विनियोग मामले में पहले भी सवाल उठ चुका है। नगरीय विकास, आवासन और स्वायत्त शासन विभाग एवं जेडीए के प्रतिनिधि अगर इसकी निगरानी नहीं करेंगे। इसके लिए अधिकारी स्तर पर गठित कमेटी में चर्चा नहीं होगी, तो वित्तीय लेनदेन की निगरानी कैसे होगी और कौन करेगा। इससे जमीन की बिक्री से होने वाली भारी धनराशि के उपयोग पर सरकार का नियंत्रण ही नहीं रहेगा। उपलब्ध धन विनियोग के संबंध में जानबूझकर खतरे पैदा होंगे।
विशेष रूप से इस तथ्य के कारण कि कथित सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट को धारा 17 के तहत आवश्यक, पंजीयन पिछले 30 साल से कराया ही नहीं गया है। खास बात यह है कि ट्रस्ट की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने की जरूरत है, जो नहीं रखी जा रही है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि गठित समिति में भी बैठक की कार्यवाही को महत्व नहीं दिया गया है और न ही गंभीरता से लिया गया है। बता दें कि ट्रस्ट इस भूमि का मिश्रित भू उपयोग करवाकर करोड़ों रुपए और कमाना चाहता है। क्योंकि यहां 15 एकड़ जमीन की बाजार दर 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा है।
भू-उपयोग परिवर्तन में जानबूझकर तथ्यों को नजरअंदाज किया गयाः
डायरेक्टर (लॉ) ने ओपिनियन में कहा है कि- मैं यह कहने के लिए बाध्य हूं कि भू-उपयोग परिवर्तन करने या इसकी अनुमति देने की कार्यवाही में तथ्यों को जानबूझकर नजरंदाज किया गया है। इस तरह यह तरीका प्रचलित होने के बाद अन्य जगहों पर भी भू-उपयोग परिवर्तन को प्रभावित करेगा। वर्तमान मामले (ज्वैल्स ऑफ इंडिया) में की गई कार्रवाइयों में कई नियमों को छोड़ दिया गया है या नजरंदाज किया गया है। यही वजह है कि समाज में इसकी आलोचना हो रही है। यह एक सार्वजनिक संपत्ति पर अधिकारियों की मिलीभगत से कब्जे का जबरदस्त उदाहरण है। इसमें लोक सेवकों को कठोर कदम उठाना चाहिए।
नदी-नालों के संबंध में कोर्ट आदेशों का पालन होः
डॉयरेक्टर (लॉ) की ओर से अपनी ओपिनियन में कहा गया है कि इस मामले में जिस तरह से आरोप लगाए जा रहे हैं। उससे लगता है कि कई जगह प्राकृतिक चीजें विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए यह प्रकरण न्यायिक जांच या अन्य एजेंसी जैसे एसीबी, सीबीआई और ईडी को जांच के लिए सौंपा जाना चाहिए। इस मामले में प्राकृतिक नदी नालों को भी अब्दुल रहमान बनाम हाईकोर्ट के मद्देनजर देखना चाहिए कि क्या कोर्ट के आदेशों की पालना हो रही है अथवा नहीं।
ऑरफनेज सेंटर और अस्पताल की जमीन का भी टाइटल क्लियर नहींः
कैप्स्टन मीटर्स और जय ड्रिंक्स प्रा. लि. की ओर से यहां चलाए जा रहे अस्पताल, स्कूल और ऑरफनेज सेंटर की जमीनों के भी टाइटल क्लियर नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक ऑरफनेज सेंटर की जमीन के टाइटल को लेकर ही यह फाइल विधिक राय के लिए डायरेक्टर लॉ को भेजी गई थी। लेकिन, रोचक तथ्य यह है कि शहर के बीचोंबीच स्थित 5000 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की बेशकीमती यह जमीन जेडीए के राजस्व रिकॉर्ड में कहीं दर्ज नहीं है। इस जमीन की लीज राशि में करोड़ों रुपए का घपला पहले भी हो चुका है। इसके लिए अकाउंटेंट जनरल (एजी) ने स्टांप ड्यूटी चोरी का ऑडिट पैरा भी बनाया था।

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Web Title-Effect of news: ED, CBI should investigate irregularities in government drain occupation and capstan meters land allotment
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