जयपुर। उद्योग एवं राजकीय उपक्रम मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने कहा है कि मार्बल स्लरी और पत्थर अवशेषों के अधिकतम लाभकारी उपयोग, प्रतिस्पर्धात्मक व्यावसायिक लागत और आम आदमी में इन उत्पादों के उपयोग की समझ पैदा करने के लिए प्रदेश में शोध और विकास (आर एण्ड डी ) को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रकृति ने राजस्थान को प्राकृतिक संपदा संपन्न प्रदेश बनाया है, ऎसे में प्रकृति और पर्यावरण में सामंजस्य बैठाते हुए इस संपदा और अवशेषों का अधिकतम लाभकारी उपयोग किया जाएगा।
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शेखावत गुरुवार को एमएनआईटी परिसर में मार्बल स्लरी और पत्थर अवशेषों के लाभकारी उपयोग विषय पर रीको, सीडॉस और एमएनआईटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। आरंभ में उन्होंने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यशाला का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि देश का 70 फीसदी पत्थर राजस्थान में हैं। मार्बल और कोटा स्टोन आदि तो 90 प्रतिशत तक प्रदेश में हैं।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के कस्टोडियन के रुप में हमारी विशेष जिम्मेदारी हो जाती है। हमें उपलब्ध संसाधनों का दोहन इस तरह से करना होगा जिससे कोई भी अवशेष निरर्थक नहीं जाए और उसका वैज्ञानिक व आधुनिक तकनीक से अधिकतम उपयोग हो सके। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पानी की रिसाइक्लनिंग कर उसका उपयोग किया जा रहा है उसी तरह से मार्बल स्लरी और पत्थरों के अवशेषों को इकोफ्रैण्डली बनाते हुए उनका उपयोग किया जाना चाहिए।
उद्योग मंत्री ने एमएनआईटी के प्रोफसर रविन्द्र नागर की देखरेख में स्थापित पीठ द्वारा मार्बल स्लरी व पत्थर अवशेषों के उपयोग के संबंध में किए जा रहे शोध और स्लरी व अवशेषों से तैयार उत्पादों की सराहना करते हुए कहा कि अभी इस काम को और आगे बढ़ाते हुए गुणवत्ता, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा व आम आदमी को उपयोग के लिए प्रेरित करने की दिशा में काम करना होगा। स्लरी व अवशेषों से तैयार उत्पादों को सरकारी मान्यता व सरकारी खरीद की मांग पर उन्होंने कहा कि मानकों पर खरा उतरने पर संबंधित विभागों से चर्चा की जाएगी।
अतिरिक्त मुख्य सचिव राजीव स्वरुप ने बताया कि प्रदेश में मार्बल, कोटा स्टोन, सैण्ड स्टोन सहित करीब 50 तरह के पत्थरों की वैरायटी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि इनके खनन, कटिंग, पॉलिसिंग के बाद बची स्लरी और अवशेषों का उपयोग करना बड़ी चुनौती है।
उन्होंने कहा कि इको फ्रैण्डली नीति तैयार करते हुए स्लरी और अवशेषों के अधिकतम उपयोग करना होगा।
रीको की प्रबंध संचालक मुग्धा सिन्हा ने कहा कि मार्बल स्लरी और सॉलिड बेस को आधुनिक तकनीक से उपयोगी बनाने की दिशा में प्रदेश में भी उल्लेखनीय कार्य हो रहा है। उन्होंने कहा कि नवीनतम तकनीक और ग्लोबल बेस्ट प्रेक्टिसेज को अपनाया जाएगा।
सीडॉस के वाइस चेयरमेन अशोक धूत ने मार्बल बेस्ट तैयार उत्पादों को राजकीय संरक्षण व मान्यता दिलाए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित की। उन्होंने बताया कि स्लरी से अन्य उत्पादों के साथ ही जिप्सम तक तैयार किया जा रहा है। एमएनआईटी के कार्यवाहक निदेशक डॉ. एस.एल. सोनी ने संस्थान द्वारा किए जा रहे शोध की जानकारी दी। सदस्य सचिव पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड केसी अरुण प्रकाश ने स्लरी व अवशेषों के लाभकारी उपयोग की आवश्यकता प्रतिपादित की।
आरंभ में सिडॉस के मुख्य कार्यकारी मुकुल रस्तोगी ने कार्यशाला के महत्व, आवश्यकता व इस दिशा में हो रहे कार्यों की विस्तार से जानकारी दी। एक दिवसीय कार्यशाला में मार्बल और पत्थर व्यवसाय से जुड़े उद्यमी, वैज्ञानिक शोधकर्ता, उद्योग व रीको के अधिकारी तथा अन्य विशेषज्ञ उपस्थित थे।
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