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पचास बरस पहले वह भी शनिवार का दिन था। रेत के समंदर से नईदिल्ली में किए गए फोन से केवल एक वाक्य कहा गया-बुद्वा इस्माइलिंग-याने बुद्व मुस्कराये। इस फोन से कुछ देर पहले थार मरूस्थल की धरती कांपी थी और बाद की खबर से दुनिया धमक गई। बुद्व पूर्णिमा का वह दिन था-18 मई 1974 जब पश्चिमी राजस्थान की पोकरण फायरिंग रेंज में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया। नया इतिहास रचने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का परमाणु परीक्षण स्थल का दौरे ने कभी ऊंघते हुए शहर के रूप में अभिशप्त जैसलमेर को विश्व पर्यटन मानचित्र पर अंकित कर दिया।
संयोगवश अब 18 मई 2024 का दिन भी शनिवार है। जब पचास बरस पहले परमाणु परीक्षण का ऐतिहासिक पृष्ठ जुड़ा। अलबत्ता इस बार बुद्व पूर्णिमा 23 मई को होगी। इसी इतिहास में 24 वर्ष पश्चात 11 एवं 13 मई 1998 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पांच परमाणु परीक्षण करके नया अध्याय जोड़ा गया। दोनों बार भारत पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों की परवाह नहीं की गई।
श्रीमती इन्दिरा गांधी की तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी परमाणु परीक्षण स्थल का अवलोकन करने आये थे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
वाजपेयी जी ने 1965 में भारत पाक युद्ध के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रसिद्व नारे-जय जवान-जय किसान में जय विज्ञान शब्द जोड़ने की घोषणा की थी।
वाजपेयी जी 21 मई 1998 को पोकरण आए थे। तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नाडीस, राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल दरबारा सिंह और मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत एवं डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी उनके साथ आए थे। संयोगवश यह लेखक न्यूज एजेंसी यूनीवार्ता, यूएनआई के प्रतिनिधि के नाते जयपुर से गई प्रेस पार्टी में सम्मिलित था। भूमिगत गहरे परीक्षण स्थल से बाहर आते समय लेखक के प्रश्न-‘‘इस धरती पर आकर आपको क्या अनुभूति हुई‘‘ के उत्तर में वाजपेयी जी ने हथेली से ‘वी‘ की मुद्रा बनाकर कहा-जय जवान-जय किसान और जय विज्ञान।
फील्ड फायरिंग रेंज में सैनिक सम्मेलन तथा पोकरण की जनसभा में भी वाजपेयी जी ने इसी नारे का उद्घोष किया।
भारत के पहले परमाणु परीक्षण के अत्यंत गोपनीय अभियान में 1967 से 1974 के वर्षो में लगभग 75 वैज्ञानिक इंजीनियर प्राण-प्राण से जुटे रहे। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के तत्कालीन निदेशक डॉ. राजा रामन्ना प्रोजेक्ट हैड तथा भौतिक विज्ञानी पी के आयंगर ने इसका डिजाइन तैयार किया था। इस टीम में भारत के राष्ट्रपति रहे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भी शामिल थे। जिन्होंने मिसाइल मैन के रूप में 1998 के पांच परमाणु परीक्षणों से अमेरिकी सेटेलाईट को भी धत्ता बताई।
पहले परमाणु परीक्षण पर निगाह रखने के लिए परीक्षण स्थल से लगभग पांच किमी दूर बनाए गए मचान पर वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं सैन्य अधिकारी विराजमान थे। इस परमाणु बम का व्यास लगभग सवा मीटर और वजन 1400 किलो था। सेना इसे बालू रेत में छिपाकर परीक्षण स्थल पर लायी। परीक्षण की आखरी तैयारी देखने के लिए वैज्ञानिक वीरेन्द्र सेठी को साईट पर भेजा गया। लेकिन जीप स्टार्ट नही होने पर शनिवार 18 मई 1974 को सुबह 8.00 बजे निर्धारित समय के पांच मिनट बाद परीक्षण होते ही धूल का गुबार उठा तथा थार मरूस्थल में से 8 से 10 किमी दूरी तक धरती कांप उठी। क्षेत्रीय जनता हतप्रभ थी। भारत सरकार की घोषणा से इस परीक्षण की जानकारी मिली।
चूंकि भारत पी टी बी टी समझौता करने वाले देशों में शामिल था। लिहाजा ऐसे देश किसी वातावरण में परीक्षण नहीं कर सकते थे। वातावरण से अभिप्राय आसमान पर, पानी के अंदर, समुद्र शामिल थे। तब भारत ने कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाया और भूमिगत परीक्षण करके अपना लक्ष्य पूरा करने के साथ विश्व को चौंकाया। डॉ. राजा रमन्ना की आत्मकथा ‘‘इयर्स ऑफ पिलिग्रिमिज‘‘ के अनुसार इस अत्यंत गोपनीय प्रोजेक्ट की जानकारी श्रीमती इन्दिरा गांधी, उनके मुख्य सचिव पी एम हकसर, पी एन धर वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. नाग चौधरी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के निदेशक एच एन सेठना तथा खुद डॉ. राजा रमन्ना तक सीमित थी।
तत्कालीन रक्षामंत्री जगजीवन राम को भी परीक्षण के पश्चात सूचित किया गया।
पर्यटन दृष्टि से इस परमाणु परीक्षण का अप्रत्यक्ष लाभ जैसलमेर को मिला। परमाणु परीक्षण स्थल का अवलोकन करके श्रीमती इन्दिरा गांधी अचानक जैसलमेर पहुंची और कलात्मक शिल्प सौंदर्य युक्त पटवों की हवेली देखी। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को पत्र लिखकर इस विरासत के सरंक्षण संवर्द्धन के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा। और तब से कदम दर कदम पीले पत्थरों से बना जैसाण दुर्ग तथा रेतीले समंदर से सना जैसलमेर देशी विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बन गया। मरू मेले ने तो इसकी ख्याति में चार चांद लगा दिए हैं।
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