जयपुर। प्रदेश में राष्ट्रीय कृमि नियंत्रण कार्यक्रम के तहत अभियान का प्रभावी क्रियान्वयन कर आंगनबाडी से लेकर विद्यालयों में 1 से 19 वर्ष तक के बच्चों को एल्बेंडाजोल दवाओं की खुराक दिलवायी गयी। इससे बच्चों में कृमि संक्रमण के प्रसार में तेजी से कमी दर्ज की गयी है। अब कृमि संक्रमण की व्यापकता एकल दर तक आ गयी है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग एवं डवलपमेंट पार्टनर एविडेंस एक्शन के संयुक्त तत्वावधान में गुरूवार को कृमि संक्रमण/ एसटीएच प्रसार के सर्वेक्षण विषय पर राजस्तरीय कार्यशाला आयोजित की गयी।
मिशन निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने कहा कि अभियान का सघन निरीक्षण एवं दवाओं की उपलब्धता का प्रबंधन सफलता का स्रोत है। उन्होंने प्रत्येक लाभार्थी तक पहुंचने के लिये स्थानीय स्तर पर व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर जोर दिया। साथ ही सभी संबंधित शिक्षा, महिला एवं बाल विकास विभाग, स्काउट, नेहरू युवा केन्द्र एवं अन्य विभागों तथा स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ मिलकर अभियान को क्रियान्वित करने के निर्देश दिए ।
निदेशक आरसीएच डॉ. आर.पी. डोरिया ने बताया कि कार्यशाला में राजस्थान राज्य में एसटीएच (परजीवी कृमि) के प्रसार से संबंधित सर्वेक्षण रिपोर्ट, कृमि नियंत्रण की दिशा में किए गए प्रयासों एवं भविष्य की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की गयी। राज्य में वर्ष 2013 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार स्कूल जाने की उम्र के बच्चों मे कृमि संक्रमण का दर 21 प्रतिशत पाया गया था। वर्ष 2015 से राज्य सरकार द्वारा लगातार एविडेंस एक्शन के सहयोग से कृमि मुक्ति हेतु प्रदेश में सालाना राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अभियान में 1.18 करोड़ बच्चों तथा अक्टूबर 2022 में 2.57 करोड़ बच्चों एवं किशोर/किशोरियों को कृमि नियंत्रण की दवाई एल्बेंडाजोल खिलाकर कृमि मुक्त किया गया। अनिमिया मुक्त भारत कार्यक्रम की सफलता में आंगनबाड़ियों तथा स्कूल आधारित राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रही है।
परियोजना निदेशक शिशु स्वास्थ्य डॉ. प्रदीप चौधरी ने बताया कि वर्ष 2019 में राजस्थान में की गयी बेसलाइन सर्वेक्षण के परिणाम के अनुसार स्कूल नहीं जाने वाले व स्कूली आयु वर्ग के बच्चों में एसटीएच संक्रमण के वेटेड व्यापकता का दर घटकर मात्र 0.7 प्रतिशत पाया गया। उन्होंने बताया कि प्रिविलेंस सर्वे के भी उत्साहजनक परिणाम हैं जो कृमि के संक्रमण मे अत्यधिक गिरावट को दिखाते हैं। यह लगातार कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम के उच्च कवरेज, राज्य की सामाजिक-आर्थिक व्यवहारों में सुधार, शुद्ध पेय जल का उपयोग सहित व्यक्तिगत स्वच्छता आदि बुनियादी व्यवहारों को अपनाने, एवं व्यवहार परिवर्तन के परिणाम को दर्शाता है।
क्या है एसटीएच
वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. प्रतीक तिवाडी ने बताया कि एसटीएच को परजीवी कृमि भी कहा जाता है और ये मिट्टी में होते हैं, जो अस्वच्छ आदतों के वजह से आसानी से पेट में पहुंचकर पेट में संक्रमण का कारण बनते हैं। उन्होंने बताया ऐसे परजीवी कृमि के कारण बच्चों व किशोर-किशोरियों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालता है। उनके शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है और यह एनीमिया और कुपोषण का कारण भी बनता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन उच्च एसटीएच व्यापकता वाले क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों और किशोर-किशोरियों के बीच परजीवी कृमि को खत्म/कम करने के लिए नियमित रूप से डीवार्मिंग की सलाह देता है।
कार्यशाला में पीजीआईएमईआर के पूर्व प्रो. डॉ. राकेश सहगल, एविडेंस एक्शन की निदेशक डॉ. सरबन्ति सेन ने भी विषय पर विस्तार से चर्चा की। कार्यशाला मे विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
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