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हीटवेव के चलते सियासी पारे के साथ ही बढ़ता मौसमी पारा

Due to heatwave, the seasonal temperature is rising along with the political temperature - Jaipur News in Hindi

लोकसभा चुनावों के मतदान के चरण जिस तरह से एक के बाद एक पूरे होते जा रहे हैं और सियासी पारा चढ़ता जा रहा हैं उसी तरह से मतदान का अंतिम चरण आने से पहले ही उत्तर, पश्चिम, मध्य और पूर्वी भारत के तापमान में भी दिन प्रतिदिन तेजी आती जा रही है। एक और जहां समग्र मतदान प्रतिशत 2019 के स्तर पर नहीं आ पा रहा हैं वहीं सूर्यदेव को लगता हैं स्वयं से ही तापमान बढ़ाने की हौड़ चल रही हैं। 29 मई को देश की राजधानी दिल्ली का पारा 52 के आंकड़ें को छू गया, हो सकता है इसको लेकर कोई मत भिन्नता हो पर इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली का पारा 50 डिग्री से तो ज्यादा ही रहा है।

देश के 17 से अधिक शहरों में तापमान उच्चतम स्तर पर चल रहा है। यह एक तरह का प्राकृतिक आपात्काल है। हीटवेव या यों कहें कि लू के थपेड़ों ने जनजीवन को प्रभावित करके रख दिया है। लू या हीटवेव या तापघात के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में मौत के समाचार भी आ रहे हैं। तस्वीर का एक पहलू यह है कि अभी तक सही मायने में हमारे देश में हीटवेव को डिजास्टर मैंनेजमेंट मेें पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है। कहीं कहीं सड़कों पर पानी छिड़कने या लोगों को घर या कार्यस्थल से बाहर नहीं निकलने की सलाह दी जाती रही है। लू से बचाव के उपायों खासतौर से खाली पेट नहीं रहने और तरल पदार्थ का अधिक से अधिक सेवन करने की सलाह दी जाती है।
साल 1850 के बाद 2023 का साल सबसे गर्म साल रहा है पर जिस तरह से तापमान दिन प्रतिदिन बढ़ते हुए जन जीवन को प्रभावित कर रहा है उससे साफ हो जाता है कि 1850 के बाद 2023 नहीं बल्कि अब तो 2024 सबसे गर्म साल रहने वाला है। समूचा उत्तरी, पश्चिमी, मध्य और पूर्वी भारत हीटवेव के चपेट में आ गया है। देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, विदर्भ आदि गंभीर हीटवेव से प्रभावित इलाके हैं।
राजस्थान के चुरु और फलोदी आदि का पारा तो 50 के आसपास ही चल रहा है। पानी, बिजली और हीटवेव के कारण बीमारी के हालात गंभीर होते जा रहे हैे। इतनी तेज गर्मी में पेयजल की उपलब्धता, बिजली की आपूर्ति व ट्रिपिंग की समस्या से निजात पाना मुश्किल हो रहा है। इस समय हीटवेव के कारण जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त होने के साथ ही सड़कों पर कर्फ्यू जैसे हालात हो रहे हैं। असली समस्या तो सरकार के सामने पानी, बिजली और हीटवेव से प्रभावित लोगों को तत्काल ईलाज की व्यवस्था सुनिश्चित करना है। आदर्श आचार संहिता लागू होने के बावजूद सभी प्रदेशों की सरकारें बेहतर प्रबंधन कर रही है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा 29 मई को जहां स्वयं भर दोपहरी सिर पर गमछा लपेट राजस्थान की राजधानी जयपुर में पेयजल व्यवस्था को देखने निकल पड़े तो निश्चित रुप से प्रशासन और आमजन में एक संदेश गया हैं वहीं प्रदेष के सभी जिलों में 28 व 29 मई को दो दिन के लिए सभी प्रभारी सचिवों को प्रभार वाले जिलों में जाकर पानी, बिजली, दवा, ईलाज आदि की व्यवस्थाओं का जायजा लेने भेजकर साफ संकेत दे दिए हैं।
गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि जहां दो दिन तक सरकार के वरिष्ठ अधिकारी इस गर्मी के मौसम में अपने कार्यालयों से निकल कर जिलों में स्थानीय प्रशासन व जिले के अधिकारियों के साथ व्यवस्थाओं की समीक्षा कर रहे हैं वहीं आपदा के इस दौर में आवश्यक दिशा-निर्देश देकर लोगों को राहत पहुंचाने में जुट गए हैं। बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती क्योंकि मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और मुख्य सचिव सुधांश पंत स्वयं प्रभारी सचिवों व जिला कलक्टरों सहित अधिकारियों से 31 मई को संवाद कायम कर फीड बैक लेने के साथ ही आवश्यक दिशा-निर्देश देंगे। राजस्थान तो एक उदाहरण है पर कमोबेस इस तरह के प्रयास हीटवेव से प्रभावित अन्य राज्यों में भी किये जा रहे होंगे, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
सामान्यतः एक मार्च से लेकर 21 जून तक सूर्य देव धरती के नजदीक होते हैं। देशी पंचाग के अनुसार नौतपा चल रहा है और माना जाता है कि इन नौ दिनों तक गर्मी का असर कुछ अधिक ही रहता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख मृत्युजंय महापात्र के अनुसार आने वाले दिनों में पश्चिमी विक्षोभ और अरब सागर में नमी के कारण गर्मी से राहत मिलने के आसार अवश्य है। पर सवाल यह है कि इस भीषण लू या यों कहें कि हीटवेव के लिए बहुत कुछ हम भी जिम्मेदार है। आज शहरी करण और विकास के नाम पर प्रकृति को विकृत करने में हमनें कोई कमी नहीं छोड़ी है। पेड़ों की खासतौर से छायादार पेड़ों की अंधाधुंध कटाई में हमने कोई कमी नहीं छोड़ी तो दूसरी और चाहे गांव हो या शहर आंख मींचकर कंक्रिट का जंगल खड़ा करते रहे और उसका दुष्परिणाम सामने हैं। जल संग्रहण के परंपरागत स्रोतों को नष्ट करने में भी हमने कोई गुरेज नहीं किया।
हमारे यहां मौसम के अनुसार खान-पान की समृद्ध परंपरा रही है पर उसे आज भुला दिया गया है। मौसम विज्ञानियों का मानना है कि पहले समुद्र में तापमान बढ़ने के साथ ही आंधी तूफान का माहौल बन जाता था और बरसात होने से लोगों को तात्कालीक राहत मिल जाती थी। पर आज तो समुद्र का तापमान बढ़ने के बावजूद हीटवेव का असर ही अधिक हो रहा है। ऐसे में अब तात्कालीक व दीर्घकालीक योजनाएं बनाकर भविष्य की रुपरेखा तय करनी होगी। क्योंकि यह तो साफ हो चुका है कि प्रकृति का हमनें इतना दोहन कर लिया है कि हालात निकट भविष्य में सुधरने की लगते नहीं हैं।
अब सुविधाओं और प्रकृति के बीच सामंजस्य की और ध्यान देना होगा नहीं तो आने वाले साल और अधिक चुनौती भरे होंगे। कंक्रिट के जंगलों से लेकर हमारे दैनिक उपयोग के अधिकांश साधन तापमान को बढ़ाने वाले ही हैं। इस चुनौती से निपटना ही होगा। अब सम्मेलनों के प्रस्तावों से आगे बढ़कर क्रियान्वयन पर जोर देना होगा।

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Web Title-Due to heatwave, the seasonal temperature is rising along with the political temperature
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