भ्रष्टाचार का योजना भवनः भ्रष्ट अफसरों को बचाने पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही सरकार
जयपुर। शासन सचिवालय के पीछे स्थित सूचना प्रौद्योगिकी और संचार निदेशालय के बेसमेंट में दो करोड़ एवं 31 लाख रुपए नकद एवं एक किलो सोना मिलने के बाद से सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार चर्चा में है। राजकॉम्प में व्याप्त भ्रष्टाचार से लडने के लिए प्रो. टी. एन. शर्मा ने प्रोग्रामर पद से त्यागपत्र दिया। उसमें लिखा था कि विभाग में जबरदस्त भ्रष्टाचार है। वह ऐसे भ्रष्ट विभाग में नौकरी नहीं कर सकते। नौकरी छोड़कर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे। उसके बाद हर स्तर पर पीएन शर्मा लड़ाई लड़ रहे हैं। विभाग के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई और राजस्थान हाईकोर्ट में पीआईएल भी लगाई है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पब्लिक अगेंस्ट करप्शन संस्था का आरोप है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ हाईकोर्ट में चल रही याचिकाओं में से एक प्रकरण में तो सरकार अपने बचाव के लिए एक वकील को हर सुनवाई पर ₹335000 अदा कर रही है। करीब 6900000 रुपए राजकॉम्प फीस अदा कर चुका है। इस संबंध में पूनम चंद भंडारी एडवोकेट और शर्मा पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिले थे। उनको बताया था कि राजकॉम्प में करीब 2000 करोड़ रुपए का घोटाला है। उनको दस्तावेज भी दिए थे। गहलोत साहब ने आश्वासन दिया था कि वे कार्यवाही करेंगे। लेकिन, कोई कार्यवाही नहीं की गई क्योंकि इस भ्रष्टाचार में कई आईएएस अधिकारी लिप्त हैं।
डॉ. टी. एन. शर्मा का आऱोप है कि सूचना प्रौद्योगिकी और संचार विभाग में तीन प्रकार के भ्रष्टाचार हैं पहला नियुक्ति में भ्रष्टाचार। इसके अंतर्गत वर्ष 2011 एवं वर्ष 2014 के उप निदेशक भर्ती मामले प्रमुख हैं। जहाँ एक सामान्य अभ्यर्थी पराग काछवा को मिलीभगत करके ओबीसी में नियुक्ति दे दी गई। वहीं एक अभ्यर्थी मुनेश लंबा जो कि ना तो मेन लिस्ट में थीं और ना वेटिंग लिस्ट में। उसको भी नियुक्ति दी गयी। इन सभी के अलावा ऐसे बहुत सारे मामले हैं जिनमें गलत अनुभव प्रमाण पत्रों के माध्यम से नौकरियां दी गई। इनमें मनीष भाटी, पवन ननकानी, योगेंद्र कुमार, शीतल अग्रवाल आदि हैं।
दूसरे प्रकार के घोटालों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दिए गए टेंडर हैं। इनके अंतर्गत प्रीसाइस, linkwell, analogous, kk electronet, श्याम कृपा नेटवर्क आदि कंपनियां हैं। जिन्हें गलत तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर टेंडर दिए गए। डॉ. टी. एन. शर्मा की तरफ से इन मामलों में उच्च न्यायालय में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पूनम चंद भंडारी ने बताया कि जानकारी मिलने के बाद भी इन फर्मों के खिलाफ FIR करने की बजाय सरकार इन्हें बचाने में लगा है। करोड़ों रुपए इन फर्जी फर्मों को बचाने के लिए खर्च किए जा रहे हैं।
अभियोजन स्वीकृतियां नहीं दी जा रही हैं। पूर्व में एक अधिकारी कुलदीप यादव के खिलाफ शिकायत की थी। उस पर एसीबी ने जांच कर मामला प्रमाणित पाया। लेकिन, सरकार के दबाव में न्यायालय में एफआर पेश कर दी।
इस मामले में टी. एन. शर्मा और भंडारी न्यायालय में उपस्थित हुए और प्रार्थना पत्र पेश कर निवेदन किया कि उनकी शिकायत के आधार पर कार्यवाही हुई थी। सरकार ने जानबूझकर इस प्रकरण में एफआर प्रस्तुत की है। इसलिए उनको सुनवाई का अवसर दिया जाए। तब न्यायालय ने भ्रष्टाचार निरोधक विभाग को निर्देश दिए कि आगामी तारीख पेशी पर प्रारंभिक जांच की पत्रावली प्रस्तुत की जाए।
भण्डारी ने बताया कि तीसरे प्रकार के घोटालों में सैंकड़ों करोड़ रुपये के निष्फल व्यय और बिना कार्य करवाए फर्मों को सैकड़ों करोड़ रुपए दिए गए है। यहां तक कि अधिकारी को राजस्थान में टूर पर जाने के लिए एक दिन का टीए और डीए खर्च 2.63 लाख रुपए दिया जा रहा है। राजस्थान के बाहर जाते हैं तो एक दिन का टूर का खर्च 4.95 लाख रुपए दिया जाता है। करीब 350 करोड़ मैनपावर के नाम पर खर्च किया गया जिसका कोई हिसाब नहीं है।
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