जयपुर। राजस्थान बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जातिगत समीकरण को फिलहाल छोड़ दें तो कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनावों में 11 सीटें गंवाने के बाद सीपी जोशी को उपचुनाव में भी हार का डर सता रहा था इसलिए उन्होंने पहले ही इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। राजस्थान बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन के बाद एक खेमा मायूस है तो दूसरे खेमे में खुशी का माहौल है।
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दरअसल लोकसभा चुनावों में बीजेपी को राजस्थान में 25 सीटें जीतकर हैट्रिक लगाने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन सीपी जोशी के नेतृत्व में पार्टी 11 सीटें हार गईं। यही नहीं सीपी जोशी खुद चित्तौड़गढ़ से अपनी सीट बचाने के लिए किसी और सीट पर प्रचार करने नहीं जा सके। दिल्ली ने भले ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी थी, लेकिन वे पूरे राजस्थान में अपना प्रभाव जमाने में कामयाब नहीं हो सके। यही वजह है कि उन्होंने पहले ही बोल दिया था कि उन्होंने अपना इस्तीफा आलाकमान को दे रखा है।
विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चेहरे पर ही हुई थीं, फिर भी एक आध भाषण में गृहमंत्री अमित शाह और मोदी ने उनकी पीठ थपाथपाकर हौसला अफजाई की थी, लेकिन वे राजस्थान में नई लीडरशिप के रूप में उतना सफल नहीं हो सके, जितना आलाकमान को उम्मीद थी।
जातिगत गणित को देखें तो ब्राह्मण समुदाय से मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही सीपी जोशी का जाना तय माना जा रहा था। यही वजह है कि सीपी जोशी लगातार अपने इस्तीफे की पेशकश कर रहे थे ताकि उनकी छवि पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। चूंकि बीजेपी का फोकस अब ओबीसी वर्ग पर है इसलिए मदन राठौड़ को प्रदेश की कमान सौंपी गई है।
अब बीजेपी में नए अध्यक्ष और नए प्रभारी की नियुक्ति होने से प्रदेश में जिलों में, मोर्चों में बदलाव को लेकर हलचल शुरू हो गई है। हालांकि मदन राठौड़ वरिष्ठ नेता है और वे सबको साथ लेकर चलने में सफल प्रयास कर सकते हैं।
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