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सीएम गहलोत ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, श्रमिकों के पक्ष में संशोधित हो दिवालिया उपक्रम संबंधी कानून

Chief Minister wrote a letter to the Prime Minister - Jaipur News in Hindi

जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसी राजकीय उपक्रम के दिवालिया होने पर बंद होने की स्थिति में उसमें कार्यरत श्रमिकों तथा राज्य सरकार के हितों की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है। मुख्यमंत्री ने इसके लिए ‘इनसाॅल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016‘ में संशोधन करने का आग्रह किया है।

गहलोत ने इस कानून की विसंगतियों की ओर प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ट करते हुए बताया कि इस कोड के प्रावधान मजदूरों एवं राज्य सरकार के हितों के विपरीत हैं, जबकि इसका उद्देश्य रूग्ण अथवा बंद उद्यमों का पुनःसंचालन करना और राज्य सम्पदा तथा कार्यरत श्रमिकों के हितों की रक्षा होना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस कानून के अनुसार, किसी उपक्रम के अवसायन (बन्द होने) की स्थिति में नियोजित कार्मिकों और मजदूरों को केवल 24 महीने की देय राशि के भुगतान का प्रावधान है। इस नाममात्र के भुगतान से जीवनयापन के संकट से जूझने वाले कार्मिकों में असंतोष व्याप्त होता है तथा कई बार कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के हालात बन जाते है।

‘बन्द होने वाले उपक्रमों के बैंक ऋणों के बेचान में पारदर्शिता की कमी’
गहलोत ने बताया है कि किसी भी राजकीय उपक्रम में भूमि तथा भवन सहित राज्य सरकार की बहुमूल्य पूंजी लगी होती है, लेकिन इस कानून के तहत उपक्रम के बन्द होने पर राज्य सरकार को भुगतान को प्राथमिकता देने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि यह कानून की गंभीर त्रुटि है। साथ ही, इस कानून के अंतर्गत किसी उद्यम के अवसायन की स्थिति में बैंक ऋणों के विक्रय की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता का अभाव है, क्योंकि उपक्रम की परिसम्पतियों के मूल्यांकन के लिए सरकार को खरीददार कम्पनी तथा निस्तारण के लिए नियुक्त बिचैलिए (रिजोल्यूशन प्रोफेशनल) पर निर्भर रहना पड़ता है।

‘निजी कम्पनी बन जाती है बहुमूल्य सम्पति की मालिक’
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि ऐसे प्रकरणों में अधिकांशतः खरीददार कम्पनी उपक्रम के संचालन के लिए बैंक से लिए गए मूल ऋण को न्यूनतम राशि पर खरीदकर उसे कई गुना बढ़ाकर बिचैलिए के समक्ष दावा प्रस्तुत करती है। इसके परिणामस्वरूप खरीददार निजी कम्पनी नाममात्र कीमत चुकाकर रूग्ण इकाई की भूमि, भवन तथा अन्य बहुमूल्य परिसम्पतियों पर एकाधिकार प्राप्त कर इनकी मालिक हो जाती है।

‘राजकीय उपक्रम दिवालिया कानून के क्षेत्राधिकार से बाहर रखे जाएं’
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को सुझाव दिया है कि वे उपरोक्त बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए इनसाॅल्वेंसी एण्ड बैंकरप्सी कोड, 2016 के प्रावधानों को संशोधित करें और राज्य की सम्पदा तथा कार्यरत श्रमिकों के हितों का संरक्षण सुनिश्चित करें। साथ ही, राज्य के अधीन उपक्रमों के अवसायन को इस कानून के क्षेत्राधिकार से बाहर रखने पर भी विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होने पर अनेक उपक्रम नाममात्र राशि के भुगतान पर निजी कम्पनियों के हाथों में चले जाएंगे और राज्य सरकारें, नियोजित कार्मिक और श्रमिक अपने अधिकारों से वंचित हो जाएंगे।

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