जयपुर। नेट-थियेट के कार्यक्रम की श्रृंखला में राजस्थान के पूर्वांचल क्षेत्र ब्रज के लोक गीतों ने समां बांधा। जब ऑनलाइन बैठे दर्शकों ने केला मैया के भवन में घुटवन खेले लांगुरिया, माथे तिलक सिंदूर है टोपी पहरी लाल, पावन बंधी पैजनी बाजै, चले ठुमकनी चाल लोकगीत सुना तो मंत्रमुग्ध हो गये। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
नेट-थियेट के राजेन्द्र शर्मा राजू ने बाताया कि ब्रज गायक और संगीत निर्देषक मुकेष वर्मा सोनी एवं अरूणा सोनी के मधुर स्वरों से लोकगीत मै तो गई रे हाथरस मंडी मैने एक जनी पे देखी मेरा बई दिन से जिया ललचाये, तगडी सोने देओ मंगवाय से गाकर माहौल को ब्रजमयी बना कर दियो। इसके बाद ले उड जाए मेरे भइया ननंद सोने की चिरैया रे। मेरी ऐडी रोज खुजाए मोहि नजर लगी है काहू छैला की। वारे लांगुरिया टोटे मे कन्हैया पैदा है गयो, जाको कौन करेगा डस्टोन तथा चिडी तोहि चामरिया भावे घर में सुंदर नार बलम तोय बनवारी भावे जैसे ब्रज लोकगीत सुना कर ब्रज संस्कृति को साकार किया।
कोरस में सहयोग दिया रंगकर्मी मनोज स्वामी एवं भवानी सोनी, घडे पर बच्चू सोनी, ढोलक कमल राणा एवं नगाड़े पर गजाधर राणा की संगत ने ब्रज संस्कृति प्रस्तुत कर महौल को कृष्णमयी बना दिया।
कार्यक्रम का संचालन विशाल भट्ट ने किया। मंच सज्जा जितेन्द्र शर्मा, सौरभ, अंकित शर्मा नोनू, तुषार। संगीत विष्णु कुमार जांगिड, प्रकाश अंकित कुमार जांगिड, आदि का रहा।
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