जयपुर। फागुन में होली की मस्ती में ब्रजभाषा में ससुरार शतक के दोहों की गूंज से राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी और लोहागढ़ विकास परिषद के तत्वावधान में रंगीलौ रंग डारि गयौ री ब्रजभाषा कवि सम्मेलन में रसिक श्रोता झूम उठे। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के पूर्व सचिव एवं आयुक्त श्याम सुन्दर बिस्सा के मुख्य आतिथ्य में कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राजस्थान संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ.जे.एन.विजय ने की। संस्कृत भारती जयपुर प्रांत के अध्यक्ष हरिशंकर भारद्वाज विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम में गीतकार वरूण चतुर्वेदी, विट्ठल पारीक, भूपेन्द्र भरतपुरी, डॉ.सुशील शील और डॉ.सुधा तिवाड़ी ने भी कविता पाठ किया।
मालवीय नगर स्थित रॉयल हटस के लॉन पर संचालक भूपेन्द्र भरतपुरी की सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कवि सम्मेलन का शीर्षक गीत विट्ठल पारीक ने प्रस्तुत किया रंगीलौ रंग डारि गयौ री, नैनन के सैनन सो भारि गयौ री। गीतकार वरूण चतुर्वेदी ने दिल्ली दर्शन के लिए पति पत्नी की नोक झाेंक पर जुड़वा गीत से हास्य रस तथा डॉ.सुशीला शील और डॉ.सुधा तिवाड़ी ने होली के श्रृंगार गीतों की छटा बिखेरी। भूपेन्द्र भरतपुरी को दंदों पर दाद मिली।
ब्रजभाषा के साधक साहित्यकार स्वर्गीय रामशरण पीतलिया रचित दोहों की रसभरी प्रस्तुति ने समां बांध दिया।
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