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वक्फ संशोधन कानून के विरोध में 'ब्लैकआउट' प्रदर्शन : एक प्रतीकात्मक प्रतिरोध या गहरे असंतोष की शुरुआत

Blackout protest against Waqf Amendment Act: A symbolic protest or the beginning of deep discontent - Jaipur News in Hindi

सैयद हबीब, जयपुर।
जयपुर सहित देश के कई हिस्सों में 15 मिनट की 'ब्लैकआउट' मुहिम ने वक्फ संशोधन कानून के विरोध को नया आयाम दे दिया। प्रतीकात्मक विरोध के इस शांतिपूर्ण और अनुशासित स्वरूप ने राजनीतिक विमर्श के साथ-साथ धार्मिक, सामाजिक और संवैधानिक अधिकारों की बहस को भी फिर से केंद्र में ला खड़ा किया है। पर क्या केवल बिजली बंद कर देना असल मुद्दों को पर्याप्त रूप से सरकार और समाज के सामने रख पा रहा है? यही वह बिंदु है जहाँ से आलोचनात्मक नजरिया आवश्यक हो जाता है।

विरोध का तरीका : मर्यादित लेकिन क्या पर्याप्त?

'ब्लैकआउट' जैसे शांतिपूर्ण विरोध का चयन यह दर्शाता है कि मुस्लिम समुदाय अपनी असहमति को जिम्मेदारी और संवेदनशीलता के साथ व्यक्त करना चाहता है। कोई नारेबाज़ी नहीं, कोई सड़क पर हंगामा नहीं—बल्कि बिजली बंद कर एक प्रतीक गढ़ा गया। लेकिन यह भी सोचने योग्य है कि क्या इस तरीके से सरकार पर पर्याप्त दबाव डाला जा सकता है? लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध यदि नीतिगत बदलाव की दिशा में न बढ़े तो यह केवल प्रतीकात्मक बनकर रह जाता है।

वक्फ संशोधन : असल चिंता क्या है?
कानून में प्रस्तावित संशोधन वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और निगरानी के पक्ष में तर्क देते हैं, जबकि वक्फ को लेकर राजनीति कर रहे मुस्लिम लीडर्स को लगता है कि यह उनकी धार्मिक और सामाजिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप है। यह विरोध यह स्पष्ट करता है कि ये लोग वक्फ बोर्ड की 'स्वायत्तता' के साथ छेड़छाड़ नहीं चाहता। परंतु आलोचनात्मक प्रश्न यह भी है कि क्या वक्फ संपत्तियों का वर्तमान प्रबंधन पारदर्शी, जवाबदेह और उद्देश्यपूर्ण रहा है? क्या इस विरोध के पीछे समुदाय के हितों की वास्तविक रक्षा है, या कुछ शक्तिशाली तबकों के विशेषाधिकारों को बनाए रखने की चिंता भी इसमें छिपी है? मेरा यह मानना है कि आजादी के बाद वक्फ संपत्तियों की जो दुर्दशा हुई है, उसके लिए भी वे ही लोग जिम्मेदार है जो आज विरोध में खड़े हैं। आम मुस्लिम को वक्फ संपत्तियों से कोई सरोकार नहीं रहा है। अगर यह बात गलत है तो देशभर में वक्फ संपत्तियों का भौतिक सत्यापन होना चाहिए। उनसे मिलने वाली की आय की ऑडिट होनी चाहिए। उनसे जुड़े लोगों की पहचान उजागर होनी चाहिए। इसमें ज्यादातर आपको मनी, मसल्स पावर वाले ही लोग मिलेंगे।

राजनीतिक समर्थन : मुद्दे का ध्रुवीकरण या प्रतिनिधित्व?

AIMIM और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं का समर्थन इस आंदोलन को एक राजनीतिक स्वर देने की कोशिश प्रतीत होती है। यह समर्थन जरूरी तो है, लेकिन यह भी सवाल उठता है कि क्या यह आंदोलन एक निष्पक्ष धार्मिक-सामाजिक चिंता है, या इसे राजनीतिक रणनीति के तौर पर भी भुनाया जा रहा है? जब धार्मिक मुद्दों का राजनीतिकरण होता है, तब असली मुद्दे अक्सर पीछे छूट जाते हैं और जनता एक बार फिर सिर्फ भावनाओं में उलझ जाती है।

जनसंपर्क की दृष्टि से सफल, लेकिन वैधानिक दृष्टि से क्या प्रभावी?

ब्लैकआउट ने मीडिया और सोशल मीडिया का ध्यान आकर्षित किया, जो आज किसी भी विरोध का पहला चरण है। लेकिन कानून में बदलाव के लिए केवल प्रतीकात्मक विरोध पर्याप्त नहीं होता। याचिकाएं, संवाद, विधायी समितियों से बातचीत—ये सब अगले चरण में होने चाहिए, जो फिलहाल इस आंदोलन में दिखाई नहीं दे रहे। यदि संवाद की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ती, तो यह प्रदर्शन सिर्फ एक इवेंट बनकर रह जाएगा।

सरकार की चुप्पी : असंवेदनशीलता या रणनीतिक प्रतीक्षा?

अब तक केंद्र सरकार ने इस विरोध पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। यह चुप्पी कई संकेत देती है—या तो सरकार इस विरोध को असंगठित मान रही है, या वह प्रतिक्रिया देने से बचकर इसे महत्वहीन बना देना चाहती है। दोनों ही स्थिति में यह जरूरी है कि सरकार संवेदनशीलता दिखाए और समुदाय की आशंकाओं को सार्वजनिक मंचों पर स्पष्ट रूप से संबोधित करे।

विरोध की भाषा का विकास ज़रूरी

'ब्लैकआउट' ने एक शांत और सशक्त शुरुआत की है, लेकिन यदि यह आंदोलन केवल अंधेरे तक सीमित रहा, तो प्रकाश की कोई दिशा तय नहीं हो पाएगी। वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और स्वायत्तता—दोनों की रक्षा आवश्यक है, और इसके लिए सरकार और समुदाय को एक साझा मंच की ज़रूरत है।

यह विरोध न तो पूरी तरह अनुचित है, न ही पूर्णतः अपरिपक्व। यह एक चिंतित समुदाय की वैधानिक चेतना का संकेत है, जिसे अनसुना करना लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ होगा। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि समुदाय खुद आत्मविश्लेषण करे—कहीं वह केवल परंपरा और नियंत्रण को बचाने के लिए तो नहीं लड़ रहा?

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Web Title-Blackout protest against Waqf Amendment Act: A symbolic protest or the beginning of deep discontent
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