जयपुर। जवाहर कला केंद्र (जेकेके) की ओर से आयोजित 'आर्ट टॉक सीरीज' के प्रथम सेशन में बुधवार को कला प्रेमियों को राजस्थान के जाने-माने मिनीएचर आर्टिस्ट्स से जुड़ने का मौका मिला। यह आर्ट टॉक प्रत्येक बुधवार को आयोजित की जाएगी। 'ए जर्नी विद द मिनीएचर पेंटिंग्स ऑफ राजस्थान' विषय पर आयोजित इस का संचालन उषा भाटिया ने किया। जिसमें कलाकार नाथूलाल वर्मा, समंदर सिंह खंगारोत 'सागर' और महावीर स्वामी ने भी हिस्सा लिया। ऑनलाइन सेशन के दौरान कलाकारों का परिचय दिया गया, कला स्वरूप को समझाया गया और उनसे जुड़ी कहानियां सुनाई गईं। इस सेशन के माध्यम से प्रतिभागियों को राजस्थान की मिनीएचर पेंटिंग्स के व्यापक परिदृश्य को समझने में मदद की। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
नाथूलाल वर्मा ने राजस्थान की मिनीएचर पेंटिंग के बारे में बताया। उनकी कलाकृतियां कालिदास के ग्रंथों जैसे 'मेघदूत', 'अभिज्ञान शाकुंतलम' और 'कुमारसंभव' से अधिक प्रेरित हैं। उन्होंने सम्पूर्ण 'रागमाला' सीरीज चित्रित की जिसके लिए उन्हें 'द अवॉर्ड ऑफ सीनियर फैलोशिप' पुरस्कार भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से मिला है। उन्होंने कई पेंटिंग्स 'रामायण' और 'गीत गोविंद' पर भी बनाई हैं। राजस्थान के मिनीएचर आर्टिस्ट्स के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मिनीएचर आर्टिस्ट उचित मूल्यों पर अपनी पेंटिंग नहीं बेच पा रहे हैं। इसलिए कोविड-19 के दौरान अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकार को कलाकारों के हित में भी ध्यान देना चाहिए और उन्हें कुछ राहत देने के लिए पेंटिंग्स की बिक्री पर जीएसटी हटा देनी चाहिए।
समंदर सिंह खंगारोत ने जयपुर के विभिन्न स्मारकों और इमारतों जैसे गुर्जर की थड़ी, पत्रिका गेट, एसएमएस अंडरपास पर किए अपने कार्यों पर चर्चा की। वह वर्तमान में '10 दिशाओं के दिग्पाल' पर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने 'कालिदास के ग्रंथ' से प्रेरित होकर कई कलाकृतियां बनाई हैं जैसे कि 'कुमारसंभव' और 'ऋतु संहार'। अपनी अनूठी तकनीक पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि वह भारतीय और जापानी चित्रकला तकनीकों के मेल से कार्य करते हैं। उनकी अधिकांश कला आपूर्ति जापान से होती है।
महावीर स्वामी ने कहा कि उनकी मिनीएचर पेंटिंग्स बनाने की यात्रा करीब 50 वर्ष पहले शुरू हुई थी। उनकी कला शैली बीकानेर पारंपरिक और कॉन्टेम्पररी है। कला विद्यालय में अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने स्वतंत्र कलाकार बनने का निर्णय लिया और पारंपरिक शैली का अभ्यास किया। वर्तमान में, वह बीकानेर स्कूल को पुनर्जीवित करने और छात्रों को कला से परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं। वह वर्तमान में 'हनुमान चालीसा के 40 श्लोकों' ,'राम दरबार', 'कल्पवृक्ष' और 'पंचतत्त्व' का चित्रण पर भी कार्य कर रहे हैं। वह पत्थर और खनिज रंगों का उपयोग करते हुए बीकानेर स्कूल शैली की प्राचीन परंपराओं का पालन कर रहे हैं। वर्तमान में बहुत कम ही कलाकार इस तकनीक का अनुसरण करते हैं।
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