जयपुर। मां के गर्भ में जीव को उल्टा लटकना पड़ता है, उस समय उसे पिछले जन्मों की सारी रील दिखाई पड़ती है कि किस-किस योनी में उसने कितनी तकलीफ सही और नर्कों में कितना दुख सहा। सब दिखाई पड़ता है और उस मालिक के भी दर्शन होते है तथा उसकी आवाज भी सुनाई पड़ती है। तब वह जीव मालिक से विनती करता है कि मुझे इस पेट रूपी नर्क से बाहर निकालो। मैं बाहर निकलकर सच्चे सतगुरु को खोजकर, उनसे आत्म कल्याण का रास्ता नामदान लेकर 24 घंटे भजन कर अपनी आत्मा का काम करूंगा, लेकिन बाहर आकर माया का पर्दा पडऩे पर वह सब भूल जाता है और बहुत पाप करने लगता है। उक्त उद्गार अजमेर रोड पर भांकरोटा में दिल्ली पब्लिक स्कूल के सामने जयगुरुदेव नगर में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर बाबा उमाकांतजी महाराज ने व्यक्त किए। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने सत्संग में कहा कि भगवान ने भोगने के लिए भोग बनाए हैं, उनमें फंसने के लिए नहीं, लेकिन इस समय लोग संसार से निकलने के तौर तरीकों को भूल गए और मौजमस्ती में ही लगे रहते हैं। सब कुछ इस शरीर की सुख सुविधा के लिए ही करते रहते हंै। आत्मा के लिए कुछ नहीं करते। इससे तमाम तरह के शारीरिक, मानसिक और आत्मिक कष्ट भोग रहे हैं और अन्त में शरीर छोडक़र जाने पर नर्क चौरासी में जाकर असहनीय तकलीफ सह रहे हैं।
चाहे संत, महात्मा हों या सतगुरु, सबको मालिक जीते जी इसी मनुश्य शरीर में ही मिला। मरने के बाद किसी को मालिक न मिलता है, न मिला है और न कभी मिलेगा। जिन्होंने पाया उन्होंने उनका रूप, रंग, आवाज, स्थान ग्रन्थ, पुराणों एवं धार्मिक किताबों में लिख दिया, लेकिन बिना सतगुरु के मालिक के पाने का भेद नहीं मिलता है। क्योंकि सतगुरु मालिक के ही तदरूप होते हैं और उस मालिक के पास आते-जाते हैं। इसलिये वे दूसरों को भी मिला देते हैं यानी उनके पास पहुंचा देते हैं। तब जीवात्मा का जन्म मरण से छुटकारा होता है। केवल मुक्ति मोक्ष से ही उद्धार नहीं होता है।
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