जयपुर। हमने पहले आपसे रसोई के संबंध में बात की थी। अब उसी बात को आगे बढ़ाते हैं। रसोई आग्नेयकोण में सबसे अच्छी है। कई बार सवाल उठता है कि आग्नेयकोण की रसोई में सिंक और पानी कैसे हो सकता है। अग्नि और पानी का बैर तो सर्व विदित है। बात सही है।
दरअसल, पहले बर्तन साफ करने का सिस्टम रसोई में होता ही नहीं था। झूठे बर्तन भी रसोई में नहीं रखे जाते थे। मिट्टी में बर्तन मांजे जाते थे। बड़े घर होते थे जिनमें दालान होता था। जैसे जैसे जगह कम हुई।
वास्तु की परिस्थितियों में भी बदलाव हुआ। अब छोटे मकान और फ्लैट कल्चर में छोटी सी रसोई में सारी व्यवस्थाएं करनी होती है। ऐसे में रसोई का जो ईशान कोण है उसमें सिंक और पानी के नल लगाने का प्रावधान है।
फ्रिज को अग्नि कोण के दायरे में रखना चाहिए। रसोई का प्लेटफार्म हमेशा लाल रंग में हो। कई लोग काला पत्थर लगा लेते है जो गलत है। पहले परिंडे अलग होते थे। मतलब पीने के पानी का एक सेपरेट स्थान होता था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
अब वह भी रसोई में ही बनाने पड़ते है। ऐसे में पीने के पानी का मटका भी ईशान में ही रखें। RO लगाने का भी यही स्थान है। यहां मटके के पास सुबह शाम दीपक जरूर जलाना चाहिए। इससे घर के पितृगण प्रसन्न रहते है।
रसोई में तांबे के बर्तन में रात को पानी भरकर रखें जिसे घर की स्त्री सुबह सूर्योदय के समय घर के मुख्यद्वार पर समर्पित करे। माना जाता है कि सुबह पितृगण घर आते हैं और ये जल ग्रहण करने के बाद प्रसन्न होकर और आशीर्वाद देकर जाते है। खाना बनाते समय ग्रहणी का मुंह पूर्व की तरफ होना चाहिए।
जितना संभव हो, रसोई में लाल रंग का बल्ब अवश्य जला कर रखे। यहां बल्ब या led लाइट पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए। यदि आपकी रसोई आग्नेयकोण में बनी है और वहां अन्य सारी चीजें गलत बन गई है तो उनकी रेमेडी यानी निदान हो सकते हैं। जो किसी वास्तु शास्त्री के निर्देशन में कराए जा सकते हैं।
दिशाशूल की दिशा में यात्रा करनी पड़े तो राहत के लिए क्या करें?
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