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जयपुर। किसी भी मांगलिक कार्य में भद्रा योग का विशेष ध्यान रखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में मंगल उत्सवों की शुरुआत और समापन को अशुभ माना जाता है। क्योंकि पुरानों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और राजा शनि की बहन है। शनि की तरह इसका स्वभाव कड़क व खूंखार बताया गया है। इसलिए उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचांग के प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया। भद्रा को होलिका दहन में भी निषिध माना गया है।
ज्योतिषाचार्य पं. पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार भद्रा को शुभ नहीं माना जाता है। भद्रा अलग-अलग होती है। स्वर्ग लोक की भद्रा, पाताल लोक की भद्रा शुभ मानी जाती है और मृत्यु लोक की अशुभ मानी जाती है।
तीनों लोकों में घूमती है भद्रा
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अलग-अलग राशि के अनुसार भद्रा तीनों लोकों में घूमती है। भद्रा में अलग-अलग चंद्रमा होते हैं। मेष, वृषभ, कर्क, मकर का चंद्रमा हो तो भद्रा स्वर्गलोक में होती है, जो शुभ मानी जाती है। मिथुन, कन्या, तुला, धनु का चंद्रमा हो तो भद्रा पाताल लोक की होती है। यह भी शुभ मानी जाती है, लेकिन सिंह, वृश्चिक, कुंभ, मीन की भद्रा मृत्यु लोक में होती है, जो अशुभ मानी जाती है। मृत्युलोक की भद्रा में कोई कार्य करने पर उस कार्य का नाश करने वाली मानी गई है। इसके दोष निवारण के लिए भद्रा का निदान भी धर्म ग्रंथों में बताया गया है।
दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में
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