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दौसा। राज्य कर्मचारियों की 11 सूत्रीय मांगों को लेकर कलेक्ट्रेट पर शुक्रवार को गूंजते नारों ने सरकार के प्रशासनिक रवैये पर सवाल खड़े कर दिए। अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य खेमराज समिति की रिपोर्ट का विरोध और वेतन-भत्तों, पेंशन तथा स्थायी नियुक्तियों की मांग थी।
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संघ के जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा ने कर्मचारियों के 53 हजार करोड़ रुपये जीपीएफ में जमा करने, पुरानी पेंशन बहाल करने और वेतन विसंगति दूर करने की मांग उठाई। कर्मचारियों ने “समान काम, समान वेतन” का नारा बुलंद करते हुए न्यूनतम वेतन ₹26,000 करने और जनवरी 2020 से जून 2021 तक के महंगाई भत्ते के एरियर का नकद भुगतान सुनिश्चित करने की मांग रखी।
संकटग्रस्त सरकारी व्यवस्था और कर्मचारियों का आक्रोश
संविदा एवं आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण की मांग ने सरकारी भर्तियों की अनिश्चितता को फिर उजागर कर दिया। राज्य सरकार द्वारा 60,000 पदों पर भर्ती की घोषणा के बावजूद कर्मचारियों ने तत्काल नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने पर ज़ोर दिया।
पुलिस, आपातकालीन सेवा कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश देने और स्थानांतरण नीति को पारदर्शी बनाने की मांग भी चर्चा में रही। आरजीएचएस योजना में कटौती को लेकर नाखुशी जताते हुए, कर्मचारियों ने सम्पूर्ण जांच एवं मुफ्त दवाइयों की सुविधा पुनः लागू करने की गुहार लगाई।
सरकार के सामने अहम सवाल: आंदोलन से समाधान तक का सफर
कर्मचारियों के इस विरोध-प्रदर्शन ने सरकार की श्रमिक नीति पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। क्या सरकार इन मांगों पर कोई ठोस कदम उठाएगी, या यह विरोध प्रदर्शन एक बड़े आंदोलन का संकेत भर है? राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह मामला चुनावी मुद्दा बन सकता है।
अब देखने वाली बात होगी कि राज्य सरकार अपने प्रशासनिक कौशल का परिचय देते हुए कर्मचारियों की मांगों का सम्मान करती है या टकराव की नीति अपनाती है।
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