चूरू। प्रदेश के नगरीय निकायों में इन दिनों जबरदस्त हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि अधिकतर निकाय इन दिनों भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के रडार पर हैं। हाल ही में अलवर नगर परिषद का आरओ जयपुर में राज्य विधानसभा परिसर के पास 3 लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। इसके तुरंत बाद बांरा जिले की मांगरोल नगर पालिका का एक अफसर कंपनी के बिल पास करने की एवज में रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया।
इन कार्रवाईयों का असर सभी निकायों तक पड़ा है।
संभवतः यही वजह है कि चूरू नगर परिषद में यूडी टैक्स के टेंडर को लेकर शिड्यूल होने के बावजूद प्री बिड की मीटिंग तक नहीं हो पाई। क्योंकि मीटिंग करने वाले अफसर अचानक गायब हो गए। नतीजन प्री बिड के लिए गई ठेकेदार कंपनियों के प्रतिनिधियों को मायूस होकर लौटना पड़ा। हालांकि इस दौरान एक प्राइवेट कंपनी के प्रतिनिधि ने तो लिखित में अपनी आपत्ति दर्ज करवानी चाही। पहले तो नगर परिषद का स्टाफ लिखित आपत्ति लेने में आना-कानी करता रहा। बाद में उन्हें लिखित आपत्ति लेनी ही पड़ी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाना चाहते हैं अफसरः
वैसे बता दें कि खासखबर डॉट कॉम ने हाल ही एक खबर में बताया था कि चूरू में 10 लाख रुपए लेकर कंपनी विशेष को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि यूडी टैक्स कलेक्शन के टेंडर में पात्रता की शर्तें ही इस तरह से डाली गई हैं ताकि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ना हो और चहेती कंपनी को टेंडर दिया जा सके। चहेती कंपनी भी वह जिसके कर्मचारी राजधानी जयपुर में यूडी टैक्स नोटिस में हेराफेरी करके टैक्स के अलावा रिश्वत लेते पकड़े जा चुके हैं। नगर निगम जयपुर कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने तक की धमकी दे चुका है।
स्वायत्त शासन विभाग के उच्चाधिकारियों की चुप्पी आश्चर्यजनकः
खास बात यह है कि चूूरू नगर परिषद में यूडी टैक्स के टेंडर का मामला स्वायत्त शासन निदेशालय और विभाग के उच्चाधिकारियों के ध्यान में आ चुका है। लेकिन, इस मामले उनकी चुप्पी आश्चर्यजनक हैं, क्योंकि अभी तक इसकी जांच के औपचारिक आदेश तक नहीं दिए गए हैं। इससे पहले भी भीलवाड़ा, अजमेर, जोधपुर और जयपुर नगरीय निकायों में खुले आम करप्शन की शिकायतें भी स्वायत्त शासन विभाग के बड़े अफसरों तक पहुंच चुकी हैं। इन सभी शिकायतों को अनदेखा कर दिया गया है।
जानिए, क्या चूरू में यूडी टैक्स सर्वे और कलेक्शन का मामलाः
दरअसल, ग्रांट यानि अनुदान के लिए भारत सरकार की शर्त के तहत सभी निकायों को अपने राजस्व आय के संसाधन बढ़ाने हैं। नगरीय विकास कर यानि य़ूडी टैक्स कलेक्शन भी इनमें एक उपाय है। इसके लिए चूरू में पहले कर योग्य संपत्तियों का जीआई बेस्ड सर्वे किया जाना है। उसके बाद टैक्स कलेक्शन किया जाना है।
इसके लिए सर्वे, सॉफ्टवेयर, टैक्स कलेक्शन आदि कामों के लिए टेंडर किए गए हैं। इनमें टेंडर की प्री-बिड मीटिंग 9 जनवरी, 2025 को तय की गई थी। इसके लिए सभी टेंडर डालने वाली कंपनियों के प्रतिनिधि चूरू पहुंच गए थे। लेकिन, इन प्रतिनिधियों के मुताबिक उस न तो आयुक्त मौजूद थे, ना ही राजस्व अधिकारी। यहां तक कि कार्यकारी अभियंता भी गैरहाजिर मिले। उन्हें जब फोन किए गए तो किसी ने उन्हें कोई उचित जवाब भी नहीं दिया।
आरएफपी दस्तावेज में विसंगतियों के आरोपः
शिकायत में आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) दस्तावेजों को लेकर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कंपनी के प्रतिनिधि सुरेश का कहना है कि योग्यता मानदंड को इस प्रकार डिजाइन किया गया है, जिससे केवल मैसर्स स्पैरो सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड को ही फायदा हो। मॉडल आरएफपी दिशा निर्देशों का भी पालन नहीं किया गया है। इसी तरह नगर परिषद को वित्तीय नुकसान पहुंचाने वाले कुछ अन्य प्रावधान भी शामिल किए गए हैं। - खासखबर नेटवर्क
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