चित्तौड़गढ़। राजस्थान का पहला सैनिक स्कूल शौर्य की धरती चित्तौड़गढ़ में 7 अगस्त 1961 को स्थापित किया गया था। यह सैनिक स्कूल बुधवार को अपना 64वां स्थापना दिवस मनायेगा। स्थापना दिवस के इस अवसर पर स्कूल के शंकर मेनन सभागार में एक विशेष सभा का आयोजन किया जायेगा।
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स्थापना दिवस समारोह के मुख्य अतिथि स्कूल के पूर्व छात्र एवं वर्तमान में भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल सुरेश चंद्र टांडी (विशिष्ट सेवा मेडल) होगें। स्कूल के एनसीसी के कैडेट्स मुख्य अतिथि को गार्ड ऑफ ऑनर देंगें। स्कूल के प्राचार्य कर्नल अनिल देव सिंह जसरोटिया स्कूल की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगें।
स्कूल के स्थापना दिवस के इस अवसर पर स्कूल के इंडोर स्टेडियम में मुख्य अतिथि केक काटेगें। स्कूल के शैक्षणिक भवन में 1974 बैच के पूर्व छात्रों द्वारा स्कूल को समर्पित इंग्लिश लैंग्वेज लैब का मुख्य अतिथि के द्वारा उद्घाटन होगा। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के द्वारा शैक्षणिक सत्र 2023-24 में कक्षा वार पहला, दूसरा एवं तीसरा स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को पुरस्कृत किया जायेगा।
इस अवसर पर उप प्राचार्य लेफ्टिनेंट कर्नल पारुल श्रीवास्तव के निर्देशन में तैयार की गई आर्ट, क्राफ्ट एवम् विज्ञान की प्रदर्शनी का भी आयोजन होगा।
भारतीय पब्लिक स्कूल कांफ्रेस का स्थापना से ही सदस्य
आजादी के बाद सेना पर देश की महत्ती जिम्मेदारी आ पड़ी थी तथा रक्षा उपकरणों एवं षस्त्रास्त्रों में नित नए प्रयोगों एवं अनुसंधानों से बढ़ती तकनीकी जटिलताओं को देखते हुए अधिक योग्य और प्रशिक्षित सैनिकों की आवश्यकता महसूस होने लगी। इसे दृश्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने 1961 में पहली बार देश में सैनिक स्कूल खोलने का निश्चय किया और देश में पांच सैनिक स्कूल शुरू किये गये।
इन्ही प्रथम पांच सैनिक स्कूल में चित्तौड़गढ़ का सैनिक स्कूल भी शामिल है जो बुधवार को अपनी स्थापना का 64वां वर्श मनायेगा। 07 अगस्त 1961 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया ने राजस्थान के एक मात्र सैनिक स्कूल शौर्य, वीरता, त्याग, भक्ति की धरा चित्तौड़गढ़ में खोलने का निर्णय लिया था तथा स्वयं दिलचस्पी दिखाते हुए बड़ी मात्रा में जमीन उपलब्ध करा उद्घाटन कराया।
शुरूआत में 1961 से 1966 तक यह स्कूल फतह प्रकाश महल, सर्किट हाउस और गाडिया लौहार छात्रावास में संचालित हुआ था। 1966 से यह स्कूलं वर्तमान भवन में संचालित हो रहा है। स्कूल के सबसे पहले प्राचार्य केरल के के.एम. शंकर मेनन बने थे। उनके नाम पर स्कूल में ऑडिटोरियम बना हुआ है।
चित्तौड़गढ़ स्थित सैनिक स्कूल आवासीय होने के कारण यहा कक्षा सात से 12 तक के छात्रों को आठ सदनों में विभाजित किया हुआ है। इन आठ सदनों के नाम योद्धाओं के नाम पर आधारित है जैसे सांगा, कुंभा, हमीर, बादल, जयमल, प्रताप, लव व कुश है। वही कक्षा 6 के छात्रौं को अलग एक सदन अशोका में रखा जाता है। यह संस्था छात्रौं को एनडीए खडगवासला (पूना) में प्रवेश के लिए तैयार करती है।
यह स्कूल स्थापना के दिन से ही भारतीय पब्लिक स्कूल कांफ्रेस का सदस्य भी है। देश में मौजूद 33 सैनिक स्कूल में ये ऐसा विरला स्कूल माना जाता है जहां के छात्र थल सेना में एक के बाद एक ऊँचे ओहदे पर पहुंचे है। सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ में पढ़कर छात्र आज देश की सेवा में बड़े पदों पर नियुक्त हुए है।
स्थापना से लेकर अब तक इस स्कूल ने देश को उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, सेना प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल, मेजर जनरल, आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर्स एवं अनेकों उच्च पदाधिकारी प्रदान किए है।
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