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अदीबों से रौनक़ अफ़रोज़ हुई सुख़न की महफ़िल

The festival of happiness became bright with the writers - Bikaner News in Hindi

बीकानेर। पर्यटन लेखक संघ-महफिले अदब की सप्ताहिक काव्य गोष्ठी की 566 वीं कड़ी में रविवार को होटल मरुधर हेरिटेज में हिंदी-उर्दू के रचनाकारों ने कलाम सुना कर दाद लूटी।
अध्यक्षता करते हुए कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि पर्यटन लेखक संघ के निरन्तर कार्यक्रमों से साहित्य को बढ़ावा मिल रहा है।उन्होंने रचना भी सुनाई-
चतुराई तिकड़मबाज़ी की,सचमुच साख सवाई है,
जो जीता बस वही सिकन्दर, युग की यही गवाही है।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने खुद ही मंज़िल खुद ही रास्ता होने की बात कही-
मन्ज़िलों की मुझे नहीं परवा,
खुद ही मंज़िल हूँ,रास्ता हूँ मैं।
आयोजक संस्था के डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने घुट्टी में सच मिले होने का वर्णन किया-
मियाँ! हमारी तो घुट्टी में यूँ मिला है सच,
कि जैसे जिस्म में खूँ बनके दौड़ता है सच।
उर्दू अकादमी सदस्य असद अली असद ने भी अपनी ग़ज़ल में सच होने का बखान किया-
ज़ियादा दूर तलक झूट की नहीं चलती,
रवां दवाँ तो तुम्हारा ही क़ाफ़िला है सच।
इम्दादुल्लाह बासित ने रस्मे दुनिया है मुझे याद तो करना होगा, प्रो नरसिंह बिनानी ने ऊपर वाले तेरे जग में ये क्या हो रहा है, डॉ जगदीश दान बारहठ ने जगत चेतना हूँ अनादि अनन्ता और कमल किशोर पारीक ने प्रीत को ऐसे निभाना चाहिए सुना कर प्रोग्राम को आगे बढ़ाया।संचालन डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने किया।

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Web Title-The festival of happiness became bright with the writers
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