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- संस्कृति के संरक्षण में साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान - राजेन्द्र जोशी
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बीकानेर। पं. सूर्यकरण पारीक पुस्तकागार की ओर से बंगला नगर स्थित तिरुपति अपार्टमेंट्स में साहित्यकार पं. सूर्यकरण पारीक की स्मृति में भारतीय संस्कृति के संरक्षण में साहित्य का योगदान विषयक विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस विचार गोष्ठी के मुख्य वक्ता पण्डित कृष्णशंकर पारीक थे । अध्यक्षता वरिष्ठ कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की। मुख्य अतिथि व्यंग्यकार, सम्पादक प्रोफेसर डॉ. अजय जोशी एवं विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार थे। संयोजक एक्स प्रिंसिपल, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ.नरसिंह बिनानी थे।
विचार गोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों द्वारा पं. सूर्यकरण पारीक के तेल चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। प्रारंभ में नीलू पारीक ने स्वागत भाषण दिया।
विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि भारतीय संस्कृति पुरातन है। संस्कृति के संरक्षण में साहित्य और साहित्यकारों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
जोशी ने कहा कि भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए मन में देश प्रेम की भावनाएं होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि पं. सूर्यकरण पारीक जैसे साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय है।
विचारगोष्ठी के मुख्य अतिथि व्यंग्यकार, सम्पादक प्रोफेसर डॉ. अजय जोशी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारतीय समाज के निर्माण का आधार संस्कृति है। उन्होंने कहा कि साहित्य को संस्कृति का दर्पण कहा जाता है। विचार गोष्ठी के मुख्य वक्ता के तौर पर अपने विचार रखते हुए पण्डित कृष्णशंकर पारीक ने कहा कि संस्कृति व साहित्य एक दूसरे के पूरक हैं।
उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में पं. सूर्यकरण पारीक के अवदान को विस्तार से रेखांकित किया l पं. कृष्णशंकर पारीक ने बीकानेर के कु.रामसिंह तंवर, ठा.चांदसिंह भाटी, कु. ऊधोदास उर्फ बृजमोहन बागड़ी तथा पं.सूर्यकरण पारीक के मध्य हुए साहित्यिक पत्राचार के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इस पत्राचार के आधार पर मित्रों के पत्र (साहित्यिक पत्र) शीर्षक से प्रकाशित कुछ विशिष्ट पत्रों का वाचन भी किया।
विचार गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि संस्कृति के संरक्षण में साहित्य का अतुलनीय योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार समाज की रीढ़ माना जाता है अत: साहित्यकारों द्वारा आमजन को संस्कृति के अनुरूप आचरण करने हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर राजाराम स्वर्णकार ने अपनी चिर-परिचित काव्य रचना- जिन्दगी के मर्म को अबतक समझ पाया नहीं, आधा जीवन जी लिया पर हाथ कुछ आया नहीं, प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया। विचार गोष्ठी के संयोजक एक्स प्रिंसिपल, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी ने प्रारंभ में गोष्ठी के मुख्य वक्ता पण्डित कृष्णशंकर पारीक का परिचय दिया l
उन्होंने बताया कि कृष्ण शंकर पारीक ने हमारे देश में खेलों के क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं । 92 वर्षीय बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी पारीक बीकानेर मूल के निवासी तथा अमेरिका व पौलेंड प्रवासी है। प्रोफेसर डॉ.बिनानी ने बताया कि पण्डित कृष्णशंकर पारीक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी एवं कुशल खेल प्रशिक्षक तथा पं. सूर्यकरण पारीक पुस्तकागार के अधिष्ठाता भी हैं ।
इस अवसर पर विचार गोष्ठी के मुख्यवक्ता पण्डित कृष्णशंकर पारीक का राजेन्द्र जोशी, प्रोफेसर डॉ. अजय जोशी, राजाराम स्वर्णकार एवं प्रोफेसर डॉ.नरसिंह बिनानी द्वारा शॉल, माल्यार्पण व श्रीफल भेंट कर अभिनंदन किया गया।
इस अवसर पर पोलैंड से आए डॉ.चंद्रशेखर पारीक, अजमेर से पधारी रेणु पारीक, जर्मनी प्रवासी रेणु पारीक, कुमारी एकता बिनानी, दिनेश पांडिया, सरोज देवी बिनानी, नर्बदा पांडिया सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे। अंत में रेणु पारीक ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
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