केवलादेव उद्यान के निदेशक अजीत उचोई ने बताया कि जिले में वरसात नहीं होने
से सूखा है और अन्य जगहों से यहाँ पानी आता था, वह भी नहीं आ रहा है जिससे
पानी की किल्लत बनी हुई है, लेकिन विगत 17 अक्टूबर को वन मंत्री गजेंद्र
खींवसर से मुलाकात के बाद चम्बल पेयजल परियोजना से उद्यान के लिए 150
एमसीएफटी पानी छोड़ने का प्रावधान हुआ है, जिससे इस सीजन को बचाया जा सकेगा।
केवलादेव उद्यान को 10 मार्च 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला था
और 1985 में इसे विश्व विरासत की सूची में शामिल कर लिया गया था लेकिन वर्ष
2008 में पानी की किल्लत के चलते यूनेस्को ने इसे डेंजर जोन की सूची में
डाल दिया था। ये भी पढ़ें - खौफ में गांव के लोग, भूले नहीं करते ये काम
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