भरतपुर। 31 साल पहले सरकारी शिक्षक महेश चंद शर्मा को नौकरी से निष्कासित कर दिया गया था। यह निष्कासन उनके बीएड की डिग्री को फर्जी बताकर किया गया था। हालांकि, बाद में उनकी डिग्री को सही पाया गया, और वे अदालत से बहाल हो गए, लेकिन उन्हें न तो नौकरी दी गई और न ही कोई भुगतान या पेंशन मिली। अब, 31 साल बाद, अदालत ने महेश चंद शर्मा को राहत देते हुए सरकार पर 86 लाख रुपये से अधिक की राशि वसूलने के लिए आदेश दिए हैं।
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महेश चंद शर्मा ने 1992 में पंचायत समिति कुम्हेर के गांव बंगाल दादू में शिक्षक के पद पर कार्य करना शुरू किया था। उनकी नियुक्ति स्थायी थी, लेकिन पंचायत समिति के विकास अधिकारी ने बिना नोटिस के उन्हें 1 दिसंबर 1992 को नौकरी से निष्कासित कर दिया। विकास अधिकारी ने उनका बीएड डिग्री फर्जी बताते हुए उनके खिलाफ पुलिस थाने में मामला दर्ज करवा दिया।
महेश चंद शर्मा ने इस निर्णय को चुनौती दी और अदालतों का दरवाजा खटखटाया। बीएड डिग्री की जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि डिग्री सही थी, और अदालतों ने महेश चंद शर्मा को बहाल कर दिया। इसके बावजूद, उन्हें न तो फिर से नियुक्ति दी गई और न ही सरकार द्वारा कोई भुगतान या पेंशन प्रदान की गई।
महेश चंद शर्मा ने छह साल पहले वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश भरतपुर एक में इस मामले में धन वसूली के लिए आवेदन किया। अदालत ने सरकार पर 86 लाख रुपये से अधिक की राशि बकाया होने का फैसला सुनाया और जिला कलेक्टर, जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वाहन और जिला परिषद भवन की कुर्की के आदेश दिए।
इस आदेश के बाद, सेल अमीन विकास आनंद शर्मा ने जिला परिषद भवन पर कुर्की के आदेश चस्पा किए। हालांकि, जिला कलेक्टर और जिला परिषद सीईओ के वाहन नहीं मिलने के कारण कुर्की की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। अधिकारियों के वाहन न मिलने के कारण आगामी तिथि पर कुर्की के आदेश चस्पा किए जाएंगे।
महेश चंद शर्मा ने बताया कि उनके साथ यह अन्याय हुआ है, और उन्हें अब तक सरकार से कोई मुआवजा या पेंशन नहीं मिली है। वे उम्मीद करते हैं कि अदालत का यह आदेश उन्हें उनका हक दिलवाएगा और सरकार से बकाया राशि की वसूली होगी।
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