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भरतपुर। भरतपुर में प्रशासन ने कलेक्ट्रेट के सामने बने दो अवैध मकानों को हटाने की कार्रवाई की। बुलडोजर चलने के बाद मकानों में रहने वाले परिवार ने गहरी नाराजगी जताई। परिवार का कहना है कि वे पिछले 50 सालों से इन मकानों में रह रहे थे और गुरुद्वारे की सेवा कर रहे थे। अब अचानक बेघर हो जाने से उनकी जिंदगी मुश्किलों से भर गई है।
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गुरबचन सिंह ने आगे बताया कि उन्होंने मकान के पट्टों के लिए नगर निगम में आवेदन किया था, लेकिन सरकारी रोक के चलते उन्हें पट्टे नहीं मिल सके। उनका सवाल है कि अगर वे वहां से हट गए, तो गुरुद्वारे की सेवा कौन करेगा।
यूआईटी सचिव ऋषभ मंडल के अनुसार, ये मकान यूआईटी की जमीन पर बने हुए थे और परिवार को अवैध अतिक्रमण के नोटिस पहले ही दिए जा चुके थे। कार्रवाई के दौरान परिवार के लिए वैकल्पिक इंतजाम की पेशकश की गई थी। यदि परिवार चाहे तो उन्हें रैन बसेरा में भी रहने की सुविधा दी जाएगी।
परिवार के बेघर होने के बाद, गुरुद्वारे की देखभाल का जिम्मा अधर में लटक गया है। यह गुरुद्वारा क्षेत्र के लिए एक धार्मिक स्थल है, और अब इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि इसका संचालन कैसे होगा।
50 साल पुराने मकानों को तोड़ने और परिवार को विस्थापित करने की इस घटना ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या परिवार को पहले से बेहतर विकल्प नहीं दिया जा सकता था? और क्या गुरुद्वारे जैसी महत्वपूर्ण धार्मिक सेवा को ध्यान में रखते हुए कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता था?
भरतपुर में हुई इस कार्रवाई ने प्रशासनिक सख्ती और मानवीय संवेदनाओं के बीच एक गहरी खाई को उजागर कर दिया है।
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