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भरतपुर। संभाग के डीग जिले में एक बेहद गंभीर और दुखद हादसा हुआ है, जो न केवल मजदूरों की जान जोखिम में डालने वाली खामियों को उजागर करता है, बल्कि सुरक्षा मानकों के उल्लंघन की ओर भी सवाल उठाता है। एक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान पांच मजदूर जहरीली गैस के संपर्क में आ गए और टैंक के अंदर फंस कर बेहोश हो गए। इस हादसे में एक मजदूर की जान चली गई जबकि चार अन्य की हालत गंभीर बनी हुई है।
यह घटना डीग शहर के मिडिल स्कूल वाली गली में रहने वाले नरेश जैन के घर पर हुई। नरेश जैन के सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए पाँच सफाई मजदूर नीचे उतरे थे। टैंक के भीतर जहरीली गैस के कारण सभी मजदूर बेहोश हो गए। घटना तब सामने आई जब किसी मजदूर ने बाहर आवाज दी, जिसके बाद आसपास के लोगों को जानकारी मिली। स्थानीय लोगों की मदद से बड़ी मशक्कत के बाद सभी पांच मजदूरों को बाहर निकाला गया। इस दर्दनाक हादसे में रोहित नामक एक सफाई कर्मचारी की मौत हो गई। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मृतक रोहित के अलावा चार अन्य मजदूरों को तुरंत डी के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जिनमें से दो की हालत इतनी नाजुक है कि उन्हें अन्य अस्पतालों में रेफर कर दिया गया है। इस घटना ने उन कष्टप्रद और खतरनाक परिस्थितियों को उजागर किया है जिनमें ये मजदूर काम करते हैं।
आलोचना और सुरक्षा की कमी:
यह दुखद घटना स्थानीय प्रशासन, मकान मालिक और सफाई सेवा प्रदाताओं की गंभीर लापरवाही को दर्शाती है। सेप्टिक टैंक की सफाई जैसी खतरनाक प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा के लिए आवश्यक साधनों और प्रशिक्षण का अभाव इस हादसे की सबसे बड़ी वजह माना जा सकता है। जहरीली गैस से बचाव के लिए उचित वेंटिलेशन, मास्क, और अन्य सुरक्षा उपकरण प्रदान करना अनिवार्य होता है, लेकिन इसका कहीं कोई प्रमाण इस घटना में नजर नहीं आता।
सरकारी और स्थानीय प्रशासन की ओर से मजदूरों की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम न उठाना चिंताजनक है। मजदूरों की जान जोखिम में डालकर काम करवाना न केवल मानवता के खिलाफ है, बल्कि कानूनन भी अपराध माना जाता है।
आगे की कार्रवाई पर सवाल :
यहां यह भी सवाल उठता है कि क्या मकान मालिक नरेश जैन ने मजदूरों को सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाए थे? क्या किसी ने इस खतरनाक काम के लिए मजदूरों को उचित प्रशिक्षण दिया था? या फिर सिर्फ कम दाम में काम निकलवाने के लिए मजदूरों को जोखिम में डाल दिया गया?
इसके अलावा, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की प्रतिक्रिया भी जांच के दायरे में होनी चाहिए। अगर दो मजदूरों को गंभीर हालत में रेफर करना पड़ा तो यह साफ है कि समय पर पर्याप्त चिकित्सा सहायता भी नहीं मिल पाई।
भरतपुर के इस हादसे ने एक बार फिर मजदूर सुरक्षा और औद्योगिक नियमों की अनदेखी की भयावह तस्वीर सामने रखी है। जरूरत है कि सरकार, प्रशासन और समाज मिलकर ऐसे हादसों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं, ताकि मजदूरों को उनके जोखिम भरे काम में जीवन सुरक्षित रह सके। मजदूरों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
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